गर्भावस्था खतरा कब और क्यों

स्त्री के लिए मां बनना नैसर्गिक अनुभव है। गर्भधारण से लेकर प्रसव की अवधि तक काफी सावधानियां रखने के बाद उसे यह सुख प्राप्त होता है। लेकिन प्रायः स्त्रियां गर्भ से संबंधित सावधानियां एवं इस दौरान होने वाले खतरों से परिचित नहीं होती शायद इसीलिए प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में स्त्रियां प्रसवकाल के दौरान दम तोड़ देती हैं। गर्भावस्था के अन्तर्गत प्रजनन विशेषज्ञ ‘हाईरिस्क प्रेगनेंसी’ अर्थात गर्भावस्था के अत्याधिक खतरे को एक गंभीर
मुद्दा मानते हैं। वे मानते हैं कि यह परिस्थिति क्यों, कब और किन हालतों में होती है, इसके निवारण के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, विशेषज्ञ क्या परामर्श देते हैं आदि बातों से स्त्री को परिचित होना जरूरी है ताकि उसकी गर्भावस्था की अवधि सुरक्षित गुजर दिल्ली के संत अस्पताल के वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. निधि सिंह के अनुसार गर्भकाल से पूर्व स्त्री जाने कि गर्भावस्था के अन्तर्गत अत्याधिक जटिल अवस्थाएं कौन सी हैं जिसे खतरा माना जाता है-
1. गर्भवती स्त्री की उम्र 35-40 के बीच या 18 वर्ष से कम की न हो। दोनों ही परिस्थितियों में गर्भाधारण से लेकर
प्रसवकाल की अवधि जटिलताओं भरी निश्चित है।
2. स्त्री का पहला बच्चा मरा हुआ पैदा हो या फिर बार-बार
गर्भपात की शिकायत हो। काफी इलाज के पश्चात उसने
गर्भधारण किया हो।
3. गर्भवती को एनीमिया (खून की कमी) की शिकायत हो
जिसमें नौ प्रतिशत से भी कम हीमोग्लोबिन (रक्तकण रंजन द्रव्य) आंकी गई हो। इसके अतिरिक्त उसको मधुमेह, उच्च रक्त चाप, क्षय संग या हद नेपर भी गर्भकाल के दौरारा जेटि परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
4. पीलिया के तीन परीक्षण तथा एच.बी.एस. पॉजीटिव, एचआईवी- पॉजीटिव, बीडीआरएल-पॉजीटिव में से बीडीआर पॉजीटिव के कारण यह गर्भावस्था खतरे के दायरे में मानी जाएगी।
5. गर्भावस्था के दौरान योनि संक्रमण व योनि से रक्तस्राव भी घातक परिणाम देता है
6. बच्चेदानी का पूर्व आपरशन हुआ हो।
7. स्त्री मोटापे (ऑबेसीटि) की शिकार हो ।
8. गर्भ में एक से अधिक शिशु का विकास हो रहा हो।
9. शिशु का वजन 2.5 किलोग्राम से भी कम होने पर गर्भावस्था में जटिलताएं आएंगी।

गर्भावस्था में तमाम विकृतियों के बावजूद विशेषज्ञ की सलाह जांच के निर्देश के से खतरे का इलाज संभव माना जाता है। प्रजनन विशेषज्ञ ‘हाईरिस्क प्रेगनेंसी’ वाली स्त्रियों
को अलग श्रेणी में रखते हैं ताकि उसकी अतिरिक्त देखभाल हो सके। कोई भी जटिलताओं के लक्षण दिखते ही उसे यथाशीघ्र दवा दी जा सके। समय-समय पर नियमित जांच एवं प्रसवकाल के समय सारी जरूरी व्यवस्था करना आवश्यक है । ऐसी स्त्रियां अपने चिकित्सक को न बदले तो बेहतर है। विशेष कारण या परिस्थिति में बदलना भी पड़ जाए तो वे अपने गर्भावस्था का पूरा इतिहास एवं जटिलताओं से नए चिकित्सक को अवश्य अवगत करवाएं। स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार ‘हाईरिस्क परेगनेंसी’ के दौरान निम्नलिखित जांच
आवश्यक ठहराए गए हैं। हीमोग्लोबिन, ब्लडग्रुप, ब्लडशुगर, स्क्रीननिंग, अल्ट्रासाउंड, एचबीएस, बीडीआरएल, एचआईवी, ब्लड यूरिया, प्लेप्लेट काऊंट, लिवरटेस्ट, यूरीन टेस्ट, कैलशियम, क्रिएटिनिंग, थैलेसिमिया।