Inspirational stories (प्रेरक प्रसंग) सच्चा कर्तव्य 103 views0 Share एक बार दो युवा साधु अपने गुरु के आदेश से आश्रम के काम से नगर गए। नगर आश्रम के बहुत दूर था और रास्ते में एक नदी भी पड़ती थी। आश्रम का काम इतना अधिक था कि उसे पूरा करते-करते सारा दिन निकल गया। लौटने का समय आया तो रात पड़ गई। सर्दियों में वैसे भी दिन छोटा होने के कारण रात जल्दी पड़ जाती है।नदी तक पहुंचते-पहुंचते अंधेरा बहुत बढ़ गया और उन्हें तारों की रोशनी में ही अपना रास्ता ढूंढना पड़ रहा था । उधर सर्दी भी अपना रंगदिखाने लगी थी। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि एक अकेली युवती पहले ही तट पर खड़ी है। उसने बताया कि वह अभी थोड़ी दूर ही थी कि उसके देखते-देखते यात्री नौका अपना अंतिम फेरा पूरा करके लौट गई है, इसे घोर संकट में डालकर । उसने यह भी बताया कि वह बिना किसी सहायता के अकेले नदी नहीं पार कर सकती और तट पर अकेले रात बिताना कतई खतरे से खाली नहीं है। इसलिए उसने उन दोनों से सहायता की प्रार्थना की। युवती की प्रार्थना सुन दोनों युवा साधु धर्मसंकट में पड़ गए। नौका न मिलने पर तैर कर नदी पार कर लेना उनके लिए मुश्किल काम नहीं था। ऐसा वे पहले भी कई बार कर चुके थे। पर उस युवती को नदी पार कराना उनके लिए बहुत बड़ी समस्या थी, क्योंकि गुरूजी से दीक्षा लेते समय उन्होंने जीवनभर नारी को न छूने का व्रत ले रखा था। उस व्रत को तोड़ना उनके लिए घोर पाप था। इसलिए अपनी असमर्थता जताने के सिवा उनके पास और कोई चारा न था। पर जब युवती ने अपनी असहाय स्थिति पर तरस खाने का अनुरोध किया तो छोटे साधु को उस पर दया आ गई और उसने मन ही मन उसकी सहायता करने का निश्चय कर लिया। पर जब उसने अपने साथी को मन की बात बताई तो उसने उसे ऐसा करने से रोकते हुए बताया कि व्रत को भंग करने पर गुरूजी उसे आश्रम से निकाल देंगे और वह कहीं का न रहेगा। अपने साथी की चेतावनी को अनसुना करते हुए उसने युवती की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा कि वह उसे कसकर पकड़ ले। युवती ने वैसा ही किया और वे दोनों नदी में उत्तर लिए। उसका साथी भी गुस्से में लाल पीला होता हुआ पीछे-पीछे चल दिया। आगे जब नदी इतनी गहरी हो गई कि युवती की कमर तक पानी आ गया तो उसने युवती को उठा लिया और उठाए-उठाए ही उसे नदी के पार किनारे पर उतार दिया और फिर उसकी तरफ देखे बिना आगे बढ़ लिया। उन दोनों को ध्यान से देखता हुआ उसका साथी भी उससे जा मिला। आश्रम अभी दूर था। वहां तक पहुंचते-पहुंचते उन्हें दो घंटे लग गए। साथी उससे इतना नाराज था कि रास्ते-भर चुप रहा और छोटे के कृत्य पर कुढ़ता रहा। आश्रम में प्रवेश करते ही उन्होंने पाया कि गुरूजी उनकी इंतजार में परेशान हैं। उन्होंने जब देरी का कारण पूछा तो बड़े ने छोटे की निंदा करते हुए उसके व्रत तोड़ने की सारी कहानी नमक-मिर्च लगाकर सुना डाली। गुरूजी ने छोटे से अपनी सफाई पेश करने को कहा तो वह विनम्रता से बोला, ‘गुरुदेव, युवती की असहाय स्थिति देखकर मुझे उस पर दया आ गयी और मुझे लगा कि उसकी मदद करना मेरा धर्म है। ऐसा करके यदि मैंने कोई अपराध किया हो तो आप मुझे जो भी दंड देंगे मैं उसे सिर झुकाकर मान लूंगा। पूरी स्थिति पर विचार करने के बाद गुरुजी ने कहा, ‘एक असहाय नारी की मदद करके तुमने कोई अपराध नहीं किया, बल्कि मानवधर्म ही निभाया है, इतना बड़ा जोखिम उठाकर ! मैं तुम्हारी विवेक-बुद्धि पर प्रसन्न हूं। स्वामी विवेकानन्द बार-बार कहा करते थे कि दीन-दुखियों की सेवा करना हमारा परम धर्म है। इसके पालन में कोई भी सिद्धांत अथवा व्रत आड़े नहीं आना चाहिए।’ फिर वे दूसरे शिष्य की ओर मुड़कर बोले, ‘अरे मूर्ख, यह तो अपना सेवाधर्म निभाकर उसे कभी का भूल चुका है और तू अभी तक उस नारी मूर्ति को मन में बसाए हुए है।’ Stay Connected What is your reaction? INTERESTING 0 KNOWLEDGEABLE 0 Awesome 0 Considerable 0 improvement 0 Astologer cum Vastu vid Harshraj SolankiJivansar.com is a website founded by Mr. Harshraj Solanki the main aim of the astrological website is to aware people about genuine astrological knowledge and avoid misconception regarding astrology and spirituality.By his genuine practical and Scientific knowledge of astrology,people gets benefit and appreciate his work very much as well as his website for analysing any Kundli very scientifically and gives powerful remedies. His predictions are very real deep observed and always try to give traditional scientific remedies which is based on Biz Mantra,Tantrik totka Pujas,Yoga Sadhana,Rudraksha and Gems therapy. Website Facebook