जब से सोनू ने घुटनों के बल रेंगना शुरू किया था, हम पति-पत्नी बेहद खुश थे। रसोई में जाती तो वह रेंगकर रसोई में चला जाता। कभी टेबल के नीचे घुस जाता। दरवाजा खुला होता तो बाहर भी निकल जाता। रमा दौड़कर उसे अंदर उठा लाती। कहती- छोनू बेटा, बाहर मिट्टी है, गंदे हो जाओगे। अंदर ही बैठकर खेलो। आओ…। और वह बैठक में फर्श पर बिठाकर उसके सामने खिलौनों का ढेर लगा देती। हम पति-पत्नी की खुशी तब और बढ़ी जब होकर चलने लगा। सुबह रमा रसोई में लगी दफ्तर जाने की तैयारी में होता। दाढ़ी पर साबुन लगा शीशे में से देखता और वहीं से रमा को आवाज देता- अरे देखो, पकड़ो इस शैतान को …मिट्टी देखकर तो यह मचल उठता है। कैसे भागा जा रहा है बाहर की तरफ।

पसीने में नहाई रमा रसोई से तेजी से बाहर निकलती और सोनू को उठाकर अंदर लें आती और कहती- छी मिट्टी। गंदी। मिट्टी में नहीं खेलते बेटा, देखो, गंदे हो गये न हाथ-पैर। छी। हमारी पूरी चौकसी के बावजूद न जाने कब मौका पाकर सोनू बाहर निकल जाता और मिट्टी से खेलने लगता। मैं पत्नी पर झुंझलाता, रमा तुम ज़रा भी इसका ध्यान नहीं रखती। कहीं मिट्टी खाने की आदत न पड़ जाए। और फिर मिट्टी में चींटी भी होती हैं, कहीं… ।

रमा अपना रोना रोती- सारा दिन तो इस पर नज़र रखती हूँ। पर इसे तो अंदर बैठकर खेलना अच्छा ही नहीं लगता। इधर नहला-धुलाकर तैयार करती हूँ, उधर यह बदमाश न जाने किस पल चकमा देकर बाहर मिट्टी में जा बैठता है। अब हर समय दरवाजा भी तो बंद नहीं रखा जा सकता। दशहरे की छुट्टियों में हम सोनू को लेकर गाँव चले गये। माँ, पिताजी, छोटे भाई-बहन सोनू को पाकर बेहद खुश हुए। कभी कोई उसे उठाता, कभी पिताजी ने सबको डांटा, यह क्या तुम लोग बच्चे को गोद में लिये-लिये घूम रहे हो। छोड़ो इसे नीचे। बच्चा है जुरा खेलने दो। सोनू को ज़ब नीचे खड़ा किया तो वह छि मित्ती, छि मित्ती- कहता हुआ दौड़कर रमा की गोद में जा घुसा जो अपनी सासु के पास नीचे फर्श पर बैठी थी। हम दोनो पति-पत्नी एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। पिता ने सुना तो सोनू को गोद में लेकर बोले- नहीं बेटा, मिट्टी को छी नहीं कहते। चल, खेतों की सैर करवाता हूँ। और वे खड़े होकर पांव में जूते पहनने लगे। तभी रमा ने अपना भय प्रकट किया, देखना पिताजी, सोनू मिट्टी में न खेले, कही मिट्टी मुँह में न डाल ले।

पिताजी एक पल रुके और बोले, तुम लोग बच्चे को मिट्टी से इतना डराते क्यों हो? मिट्टी तो हमारी माँ है। मिट्टी से आये हैं और मिट्टी में ही मिल जाना है। मिट्टी में खेल-कूदकर तो बच्चे बड़े होते हैं। बच्चे को मिट्टी से इस तरह काटकर रखोगे तो वह मिट्टी की कीमत और उसकी महक को कैसे जान सकेगा और वह सोनू को लेकर खेतों की ओर बढ़ गये।आज के बच्चे tiles par  पलते-बढ़ते है। न शरीर ही हृस्त-पुष्ट और ना ही मिट्टी की महत्ता से परिचित है!

 

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Astologer cum Vastu vid Harshraj Solanki
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