Shani(शनि)

शनि परम न्यायाधीश

यह विश्व ग्रहों द्वारा नियंत्रित है। शनिदेव को मुख्य नियंत्रक माना गया है। शनि को ग्रहों के प्रधान न्यायाधीश का दर्जा दिया गया है। शनिदेव के निर्णय के अनुसार ही अन्य ग्रह भी संबंधित व्यक्ति को शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं। जड़-चेतन सभी पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार नवग्रह भगवान विष्णु के विविध अवतारों के प्रतीक हैं। सूर्य को राम, चन्द्रमा को कृष्ण, मंगल को नृसिंह, बुध को बौद्ध, गुरु को वामन, शुक्र को परशुराम, शनि को कूर्म, राहु को वाराह और केतु को मत्स्य का अवतार माना गया है। शनि का प्रादुर्भाव राम के ग्रह अवतार सूर्य के पुत्र के रूप में हुआ है। शनिदेव खुद समुंद्र मंथन के समय सुमेरु पर्वत के आधार बने विष्णु के कूर्म अवतार के प्रतीक हैं। देवलोकवासियों को ग्रहों का अंश माना गया है। ग्रहों का अधिकार क्षेत्र देवताओं से बड़ा माना गया है। वर्तमान युग कलयुग को आधुनिक आविष्कारों के कलपुर्जों का युग कहना ही सही है। ऐसे में कलयुग कहना ही सटीक है। ज्योतिष शास्त्र में अंतरिक्ष, सुनसान स्थानों, श्मशान और जनशून्य आकाश पाताल के रहस्य पूर्ण स्थलों पर शनिदेव का अधिकार बताया गया है। इसी कारण अंतरिक्ष और अन्य शनि के अधिकार क्षेत्रों में रहस्यपूर्ण विषयों तथा स्थानों में मनुष्य की प्रगति को देखते हुए इसे शनि युग भी कहा जा सकता है। शनिदेव केवल रहस्यमय या गुह्य ज्ञान के ही स्वामी नहीं बल्कि कर्म, लगातार प्रयत्न, श्रम, सेवा, लाचार, विकलांग, रोगी और वृद्धों की सहायता से प्रसन्न होते हैं। कर्म के कारक शनिदेव प्रधान युग में ब्रह्मांड और परमाणु जगत के रहस्यों के खुलासों के बीच अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव की चर्चा करने पर हंसी भी उड़ाई जाती है। हमारी प्राचीन धारणा यथा पिण्डे तथा ब्रह्मांडे की पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है। भौतिक विज्ञान पदार्थ की सूक्ष्म और प्राथमिक संरचना का आधार परमाणु को मानता है। इसी संरचना पर गौर करें तो परमाणु की नाभि पर स्थित धनात्मक प्रोटान के चारों तरफ घूमने वाले ऋणात्मक इलेक्ट्रानिकों के परिपथ भी बहुत कुछ सौर परिवार के सदस्य ग्रहों के समान और उनकी तरह गतिशील होते हैं । ज्योतिष के आधार पर व्यक्ति के जीवन के तमाम पहलुओं पर पूरी रोशनी डाली सकती है। ज्योतिष व्यक्ति को कर्तव्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। शनिदेव तो मनुष्य को कर्तव्य क्षेत्र में र जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। शनि पर विशेष शोध में लगे पंडित मदनलाल राजस्थानी के अनुसार शनिदेव कर्म के कारक होने के कारण मनुष्य को क्रियमाण कर्मों का अवलम्बन ले अपने पूर्वकृत कर्मों के फलभोग को भी कुछ हद तक अपने अनुरूप बना सकता है। पंडित मदनलाल राजस्थानी के अनुसार ही शनिदेव प्रधान युग की शुरुआत हो चुकी है। यह दौर शनिदेव के बारे में व्याप्त तमाम भ्रांतियों को दूर करने का समय है। शनिदेव तो प्रभु के आदेश पर ही प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। शनिदेव प्रभु के आदेश का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं। पूर्व जन्म कर्मों के अनुसार ही संचित पुण्य और पापों का फल वर्तमान जीवन में ग्रहों के अनुसार प्रक्ट होते हैं। शनि के अनुकूल होने पर मनुष्य को स्मरण शक्ति, धन वैभव और ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है। उन्हें गड़े खजाने भी मिल जाते हैं। शनि के प्रतिकूल होने पर बहुत कष्ट भी भुगतने पड़ते हैं। धन और यश नष्ट हो जाते हैं। राजा रंक बन जाता है। कोप का भाजन वही लोग बनते हैं जो गलत काम करते हैं। अच्छे काम करने वालों पर शनि प्रसन्न होकर महत्वपूर्ण पदों का स्वामी बना देते हैं। शनिदेव नाराज हो जाए तो कालकोठरी का रास्ता भी दिखा देते हैं।

शनिदेव को शत्रु नहीं मित्र रूप में देखना चाहिए। मनुष्य पूर्वकृत कर्मों का फल भोगने के लिए विवश और निरीह प्राणी नहीं है। वह वर्तमान समय में उचित कर्म करके अपने पूर्वकृत कर्मों के फलों की प्रभावित कर सकता है। अच्छे कर्म करके शनिदेव को भी प्रसन्न किया जा सकता है। हमारे कर्म ही हमारे शत्रु और मित्र होते हैं। हमे शनिदेव से डरने की नहीं उन्हें समझने की जरूरत है। शनिदेव को परम न्यायाधीश मानते हुए सत्कर्म करते हुए शनि का जाप करके उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। शनैश्चरी अमावस्या पर शनि की उपासना विशेष फलदायी होती है। इस अमावस्या पर पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। हमारे धर्मग्रंथों में देवकार्य और पितृ कार्य को समान महत्व दिया गया है। मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए शनैश्चरी अमावस्या को शनिदेव तेलाभिषेक अवश्य करना चाहिए।

 

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Astologer cum Vastu vid Harshraj Solanki
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