Surya Vigyan सूर्य विज्ञान

जगत का आत्मा सूर्य

पूर्व एवं पश्चिम के लोगों की या उत्तर और दक्षिण के लोगों की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं में जो अन्तर पाया जाता है, वह मात्र खानपान, जाति या संस्कृति के भेद के कारण नहीं अपितु यह भेद जलवायु की भिन्नता के कारण है और चूंकि जलवायु का परिवर्तन सूर्य पर आधारित है, अतः जलवायु एवं उसकी विविधता के कारण मानवजाति पर पड़ने वाला प्रभाव एक प्रकार से सूर्य का ही प्रभाव है  जैसे हमारी पृथ्वी को अपनी कक्षा में घुमाने वाला यह सूर्य है, वैसे ही यह सौर परिवार के अन्य सभी ग्रहों को अपनी-अपनी कक्षा में अपने चारों ओर निरन्तर घुमाता रहता है। पृथ्वी सहित सभी ग्रहों को गतिशील करने के साथ-साथ यह पूरे ब्रह्माण्ड को ऊर्जा, ऊष्मा एवं प्रकाश देकर सौर परिवार के सभी ग्रहों का लगातार उपकार करता रहता है। हमारी धरती की सभी विशेषताएं इसी सूर्य की देन हैं। इस धरती की सबसे बड़ी विशेषता है-गुरूत्व शक्ति और चुम्बकीय शक्ति, जो उसने अपनी उत्पत्ति के बाद लगभग 460 करोड़ वर्षों के उस कक्षा भ्रमण से प्राप्त की है, जिसका सूत्रधार सूर्य है। कल्पना कीजिए कि यदि पृथ्वी में गुरुत्व शक्ति न हो, तो क्या हमारा जीवन और उसकी गतिविधियां चल सकती हैं? कदापि नहीं। और यदि कदाचित सूर्य न हो, तो पृथ्वी सहित सभी ग्रहों की गतिविधियां क्या इसी प्रकार से नहीं रूक जायेगी ? जैसे आत्मा के निकलते ही शरीर की गतिविधियां! सौरपरिवार के ग्रहों के साथ सूर्य के इस सम्बंध और उसकी इस भूमिका को देखकर ही वैदिकं ऋषियों ने कहा है- ‘सूर्यो आत्मा जगतस्यस्थुपश्व’ इस वर्ष के सूर्यग्रहण और उनका प्रभाव सूर्य एवं चन्द्रमा के ग्रहण प्राचीनकाल से ही मानव जाति को आश्चर्यचकित करते रहे हैं। और इसीलिए प्राचीनकाल से ही हमारे- ऋषियों एवं मनीषी आचार्यों ने इनकी सम्भावना और इनके जन-जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में शोधपूर्ण चिंतन किया है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक वर्ष में अधिकतम पांच सूर्य ग्रहण और दो चन्द्रग्रहण पड़ते हैं। 

सूर्य से जलवायु में अंतर पृथ्वी पर जलवायु की दशाओं उसका मुख्यकारक सूर्य है। कारण यह है कि जहां-जहां सूर्य की किरणें लम्बवत सीधा पड़ती हैं, जैसी कि भूमध्यरेखा के आसपास वहां-वहां तापमान अधिक होता है। और धरती पर जहां-जहां  इसकी किरणें तिरछी पड़ती है, जैसी कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवप्रदेशों पर वहां-वहां तापमान शून्य और उससे नीचे चला जाता है। जलवायु का यही परिवर्तन दूसरी भाषा में ऋतु परिवर्तन कहा जाता है, जिसका कारक सूर्य है। यह परिवर्तन कुछ खास राशियों में सूर्य की स्थितिवश होता है। उदाहरणार्थ- ग्रीष्म ऋतु में वृष एवं मिथुन राशि में स्थित सूर्य की किरणों में हमारे देश में तापमान बढ़ना और हेमन्त ऋतु में वृश्चिक एवं घनु राशि में स्थित सूर्य की किरणों से तापमान का घटना-इसके साक्ष्य हैं। सूर्य की तेज किरणों से वाष्पीकरण और उससे होने वाली वर्षा तथा उसकी मात्रा भी सूर्य का पर आधारित होती है। पूर्व एवं पश्चिम के लोगों की या उत्तर और दक्षिण के लोगों की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं में जो अन्तर पाया जाता है, वह मात्र खानपान, जाति या संस्कृति के भेद के कारण नहीं अपितु यह भेद जलवायु की भिन्नता के कारण है। वस्तुतः जलवायु की दशाओं और इसके परिवर्तनों का, मनुष्य के शारीरिक मानसिक एवं बौद्धिक विकास पर उसकी क्षमता, मानसिकता एवं चरित्र पर सीधा प्रभाव पड़ता है । और चूंकि जलवायु का परिवर्तन सूर्य पर आधारित है, अतः जलवायु एवं उसकी विविधता के कारण मानवजाति पर पड़ने वाला प्रभाव – एक प्रकार से सूर्य का ही प्रभाव है। प्रदूषण एवं विषाणुओं से मुक्ति सूर्य विकिरण के माध्यम से हमारे आसपास के वातावरण में विद्यमान प्रदूषण एवं विषाणुओं को नष्ट कर हमारी सुरक्षा करता है।

उदाहरणार्थ- प्रात:कालीन सूर्य की किरणों में पराबैंगनी विकिरणें (अल्ट्रावायलेट रेज) अधिक मात्रा में पायी जाती है, जिनमें शरीर के पोषकतत्वों (विटामिन्स) के साथ-साथ विषाणुओं को नष्ट करने की असीमित क्षमता होती है। सूर्य की ये पराबैंगनी विकिरणें प्रात: होते ही वातावरण में विद्यमान रात्रि के प्रदूषण एवं विषाणुओं को नष्ट कर वैसे ही हमारे आसपास के वातावरण को शुद्ध कर देती हैं, जैसे हम प्रातःकाल झाड़-पौंछा करके अपने घर को साफ सुथरा कर लेते हैं।

 

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Astologer cum Vastu vid Harshraj Solanki
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