LAGHU KATHA(लघु कथाएं)

रिश्वत का नतीजा

 सही तरह से तो ये बात मालूम नहीं थी कि प्रभुदेव अधिकारी हैं  या कोई साधारण कर्मचारी। फिर भी इतना तो अवश्य ही मालूम था कि वे किसी कार्यालय में कार्य करते थे, न कि निजी व्यवसाय करते थे। यह अलग बात है कि रिश्वत लेना एक प्रकार का निजी व्यवसाय है। अब यह समझ में नहीं आता कि प्रभुदेव की निंदा का क्या कारण है अर्थात सरकारी कार्य व निजी व्यवसाय एक साथ करने के कारण प्रभुदेव की निंदा की गई अथवा निजी व्यवसाय ही गलत था, जिससे प्रभुदेव की निंदा की गई? जब निंदनीय कार्य किया जाता है, तो निंदनीय कार्य करनेवाले व्यक्ति के बारे में यह नहीं कहा जाता कि यह कोई अन्य कार्य करता था या नहीं। तभी तो, जब निजी व्यवसाय को गलत माना गया, तो प्रभुदेव निंदा के पात्र बने। प्रभु की निंदा करनेवाले को गलत समझा जाता है, तो फिर यहां प्रभु की निंदा करने वाले को सही क्यों समझा जा रहा है? बात यह है कि प्रभु अकेले नहीं हैं, बल्कि प्रभु के साथ देव भी हैं और पुस्तकों में लिखा गया है कि प्रभु स्वयं ही अकेले रहते हैं। जब प्रभु को अकेले न रहने की बात की जाए (प्रभुदेव के आधार पर), तो यह निंदा का विषय है और उस दिन जो कक्ष में रुपये लेकर आये, वे देव की तरह मालूम पड़ते थे (इससे साबित होता था कि प्रभु के साथ देव हैं)। जिस के साथ देव का होना ठीक नहीं समझा गया, उसी तरह तरह से प्रभु प्रभुदेव के पास रुपये लेकर आनेवाले व्यक्ति को भी ठीक नहीं समझा गया। अब एक अजीब सवाल उठता है कि जब रिश्वत देकर उसने गलत कार्य किया, तो फिर उसे देव क्यों कहा गया। देव तो अच्छे व्यक्ति को कहा जाता है। यह मालूम करने की आवश्यकता नहीं थी कि रिश्वत देनेवाला व्यक्ति कौन-सा कार्य करता है, किन्तु यह तो मालूम करने की आवश्यकता थी कि रिश्वत क्यों दी जा रही है। बात यह है कि रिश्वत देनेवाला अपने पुत्र को परीक्षा में सर्वोच्च स्थान दिलाना चाहता था।

प्रभुदेव ने बीस हजार रुपये लेकर यह कार्य कर दिया। उस दिन जब शाम को वे अपने घर आए, तो हताश हो गये। ये सोचकर घबराने की जरूरत नहीं है कि प्रभुदेव को (रिश्वत लेने के आरोप में) गिरफ्तार करने के लिए कुछ लोग उनके घर पर आये हुए थे। बात यह है कि प्रभुदेव के पुत्र ने भी परीक्षा दी थी और उसने सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने के लिए पूरे वर्ष रात-दिन एक किया, लेकिन न जाने कैसे, एक अन्य विद्यार्थी उससे आगे आ गया। प्रभुदेव के पुत्र को दूसरा स्थान मिला। यदि प्रभुदेव अपने पुत्र को सर्वोच्च स्थान की सिफारिश हेतु किसी अधिकारी या कर्मचारी के पास जाएंगे, तो उन्हें कम-से-कम चालीस हजार रुपये देने पड़ेंगे। इस तरह, उस व्यक्ति से रिश्वत लेकर प्रभुदेव ने बीस हजार रुपये का लाभ नहीं कमाया, बल्कि बीस हजार रुपये का नुकसान उठाया। प्रभुदेव को यह ध्यान ही नहीं रहा था कि उनका पुत्र भी परीक्षा में शामिल है। वे कुछ पहल नहीं कर पाये, क्योंकि वे अपने पुत्र को सर्वोच्च स्थान देते, तो रिश्वत देनेवाला व्यक्ति उन पर धोखा देने का आरोप लगाता, जिससे उनकी नौकरी समाप्त भी हो सकती थी।

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Astologer cum Vastu vid Harshraj Solanki
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