जब बुद्ध धीरे-धीरे सचेतावस्था में मार्ग पर पग बढ़ा रहे थे तो दूर से भागकर आते किसी व्यक्ति को पदचाप सुनायी दी। वह समझ गए कि यह अंगुलिमाल ही है। उनके मन के अंदर तथा बाहर जो कुछ घटित हो रहा था, उसके प्रति पूर्ण सजग बुद्ध मंद पगों से आगे बढ़ते रहे। अंगुलिमाल चिल्लाया, ‘भिक्खु रूक जाओ।’ बुद्ध अपने धीरे-गंभीर पग बढ़ाते हुए चलते रहे। उसकी पद-चाप से वह समझ गए कि अंगुलिमाल भागने की बजाय तेज कदमों से चलने लगा है और वह उनसे अधिक दूर नहीं है। यद्यपि बुद्ध छप्पन वर्ष के हो गए थे- किंतु उनकी दृष्टि और श्रवण-शक्ति पहले की अपेक्षा प्रखर हो गयी थी। उनके हाथ में भिक्षा-पात्र के अतिरिक्त कुछ नहीं था। उन्हें यह याद करके मुस्कराहट आ गयी कि युद्ध विद्या सीखते समय वह कितने तेज और

फुर्तीले थे। कोई अन्य व्यक्ति उन पर आघात नहीं कर सकता था। बुद्ध समझ चुके थे कि अंगुलिमाल एकदम पास आ गया है और उसके हात में तलवार है। बुद्ध सहजतापूर्वक चलते रहे । तेज चलकर अंगुलिमाल बुद्ध के समीप आ गया और बोला, ‘भिक्खु, मैंने तुम्हें रूकने

के लिए कहा था, रूके क्यों नहीं ?’ बुद्ध ने चलते-चलते ही कहा, ‘अंगुलिमाल, मैं तो बहुत पहले स्थिर हो चुका हूं, किंतु तुम्हीं नहीं हुए अंगुलिमाल बुद्ध के इस असाधारण

उत्तर से सकपका गया। उसने बुद्ध का मार्ग ने रोककर उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया। बुद्ध अंगुलिमाल की आंखों से आंखे मिलायी तो वह और भी सकपकाया । बुद्ध उसकी ओर ऐसे देख रहे थे, मानो वह कोई मित्र या भाई हो । बुद्ध

ने उसका नाम लिया था जिसका अर्थ है कि वह जानता है कि अंगुलिमाल कौन है ? निश्चय ही यह व्यक्ति मेरी खूंखार प्रकृति का ज्ञान रखता है। एक हत्यारे को सामने देखकर यह इतना शांत और सहज कैसे हो सकता है? अंगुलिमाल बुद्ध की कृपालु और सदाचारपूर्ण दृष्टि को अधिक सहन नही कर सका तो बोला, ‘भिक्खु, तुमने कहा था कि  बहुत समय पहले स्थिर हो चुके हो किंतु तुम तो अब भी चल रहे हो। तुमने कहा था कि मैं ही नहीं रूका हूं। इससे तुम्हारा क्या अर्थ था ?’  बुद्ध ने उत्तर दिया, ‘अंगुलिमाल, मैंने दूसरों को कष्ट पहुंचाने वाले कर्म करने बहुत पहले बंद कर दिए हैं। मैंने मनुष्यों ही नहीं, प्राणीमात्र की रक्षा करना सीख लिया है। अंगुलिमाल, सभी प्राणी जीवित रहना चाहते हैं। सभी को मृत्यु का भय लगता है। हमें करूणापूर्ण हृदय और प्राणीमात्र की रक्षा करने की भावना जगानी चाहिए।’

‘मानव मानव के साथ प्रेम नहीं करता। तब मैं अन्य लोगों से प्रेम क्यों करूं? मनुष्य निर्दयी और धोखेबाज होते हैं। मैं तब तक चैन से नहीं बैठूंगा, जब तक सबको न मार डालूं।”

 बुद्ध ने सहजता से कहा, ‘अंगुलिमाल, तुमको लोगों के हाथों बहुत कष्ट उठाने पड़े है। कभी-कभी तो मानव बहुत ही क्रूर जाता है। यह क्रूरता अज्ञान, घृणा और द्वेष के कारण होती है किंतु लोग समझदार और करूणा से भी पूर्ण होते हैं। तुम कभी किसी भिक्खु से मिले हो? भिक्खुओं ने अन्य सभी प्राणियों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा ली होती है। उन्होंने इच्छाओं, घृणा और अज्ञान पर विजय प्राप्त करने का वचन लिया होता है। भिक्खु ही नहीं, अन्य लोगों का जीवन भी समझदारी और प्रेमपूर्ण हो सकता है।

अंगुलिमाल, यदि संसार में क्रूर व्यक्ति होते हैं तो अन्य प्रकार के भी लोग होते हैं, अंधे मत बनो। मेरा सधर्म मार्ग क्रूरता को करूणा में बदल देता है। घृणा के मार्ग पर तो तुम चल रहे हो। तुम्हें रूकना चाहिए। इसके स्थान पर तुम्हें क्षमा, ज्ञान और प्रेम का मार्ग चुनना चाहिए।’ अंगुलिमाल भिक्खु के शब्दों से बहुत प्रभावित हुआ किंतु उसके दिमाग में उलझन पैदा हो गयी। उसे अकस्मात लगा जैसे उसे चीर कर खोल दिया गया है और घावों पर नमक लगा दिया गया हो। बुद्ध के मन में न तो घृणा थी और न तिरस्कार भाव। बुद्ध अंगुलिमाल को इस प्रकार देख रहे थे जैसे वह व्यक्ति का आदर का पात्र समझ रहे हों। तो क्या यह भिक्खु गौतम है जिसे लोग, ‘बुद्ध’ कहते हैं । अंगुलिमाल ने पूछा, ‘क्या आप भिक्खु गौतम हो ?’

बुद्ध ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया। अंगुलिमाल ने कहा, ‘कितनी दुर्भाग्य की बात है कि मेरी आपसे भेंट आज से पहले नहीं हुई। मैं विनाश के मार्ग पर बहुत आगे तक बढ़ गया हूं। अब मेरे लिए उस स्थान से लौट पाना संभव नहीं।’

बुद्ध ने कहा, ‘नहीं, अंगुलिमाल,अच्छा काम करने के लिए कोई भी समय विलम्बपूर्ण नही होता।’ ‘मैं क्या अच्छा काम करने योग्य रह गया हूं? 

“घृणा और हिंसा के मार्ग पर चलना बंद करो। यही सबसे बड़ा काम होगा। अंगुलिमाल, दुःख सागर बहुत विशाल है किंतु पीछे की ओर देखोगे तो किनारा दिखाई दे जाएगा।’ बुद्ध ने अंगुलिमाल का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘अंगुलिमाल, यदि तुम अपनी घृणा त्याग दो और सद्धर्म के मार्ग का अध्ययन और अभ्यास करो तो मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा।’ अंगुलिमाल ने बुद्ध के समक्ष नमन किया। उसने अपनी पीठ पर बंधी तलवार खोलकर जमीन पर रख दी और बुद्ध के चरणों पर प्रणात हो गया।

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