Ashtakam अष्टकम

Radhashtakam~श्रीराधाष्टकम्

|| श्रीराधाष्टकम् ||

नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै

नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै।

सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्त:-

प्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ।।1।।

अर्थ – श्रीराधिके! तुम्हीं श्री लक्ष्मी हो, तुम्हें नमस्कार है, तुम्हीं पराशक्ति राधिका हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुकुन्द की प्रियतमा हो, तुम्हें नमस्कार है। सदानन्दस्वरूपे देवि! तुम मेरे अन्त:करण के प्रकाश में श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण के साथ सुशोभित होती हुई मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।

स्ववासोSपहारं यशोदासुतं वा

स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् ।

स्वदाम्नोदरं या बबन्धाशु नीव्या

प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम् ।।2।।

अर्थ – जो अपने वस्त्र का अपहरण करने वाले अथवा अपने दूध-दही, माखन आदि चुराने वाले यशोदानन्दन श्रीकृष्ण की आराधना करती हैं, जिन्होंने अपनी नीवी के बन्धन से श्रीकृष्ण के उदर को शीघ्र ही बाँध लिया था, जिसके कारण उनका नाम “दामोदर” हो गया, उन दामोदर प्रियतमा श्रीराधा रानी की मैं निश्चय ही शरण लेता हूँ।

दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं

महाप्रेमपूरेण राधाभिधाSभू: ।

स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ

प्रपन्नाय मे कृष्णरूपे समक्षम् ।।3।।

अर्थ – श्रीराधे! जिनकी आराधना कठिन है उन श्रीकृष्ण की भी आराधना करके तुमने अपने महान प्रेम सिन्धु की बाढ़ से उन्हें वश में कर लिया। श्रीकृष्ण की आराधना के ही कारण तुम “राधा” नाम से विख्यात हुई। श्रीकृष्णस्वरूपे! अपना यह नामकरण स्वयं तुमने किया है, इससे अपने सम्मुख आये हुए मुझ शरणागत को श्रीहरि का प्रेम प्रदान करो।

मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्ध:

पतंगो यथा त्वामनुभ्राम्यमाण:।

उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन्

कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम् ।।4।।

अर्थ – तुम्हारी प्रेम डोर में बँधे हुए भगवान श्रीकृष्ण पतंग की भाँति सदा तुम्हारे आस-पास ही चक्कर लगाते रहते हैं, हार्दिक प्रेम का अनुसरण करके तुम्हारे पास ही रहते हैं और क्रीडा करते हैं। देवि! तुम्हारी कृपा सब पर है, अत: मेरे द्वारा अपनी आराधना करवाओ।

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं

मुकुन्देन साकं विधायांकमालम् ।

सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षै:

श्रियं चिन्तयेत् सच्चिदानन्दरूपाम् ।।5।।

अर्थ – जो प्रतिदिन नियत समय पर श्रीश्यामसुन्दर के साथ उन्हें अपने अंक की माला अर्पित करके लीलाभूमि – वृन्दावन में विहार करती हैं, भक्तजनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा-कटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानन्दस्वरुपा श्रीलाड़िली का सदा चिन्तन करें।

मुकुन्दानुरागेण रोमांचितांगी –

महं व्याप्यमानां तनुस्वेदविन्दुम् ।

महाहार्दवृष्टया कृपापांगदृष्ट्या

समालोकयन्तीं कदा त्वां विचक्षे ।।6।।

अर्थ – श्रीराधे! तुम्हारे मन-प्राणों में आनन्दकन्द श्रीकृष्ण का प्रगाढ़ अनुराग व्याप्त है, अतएव तुम्हारे श्रीअंग सदा रोमांच से विभूषित हैं और अंग-अंग सूक्ष्म स्वेदबिन्दुओं से सुशोभित होता है। तुम अपनी कृपा-कटाक्ष से परिपूर्ण दृष्टि द्वारा महान प्रेम की वर्षा करती हुई मेरी ओर देख रही हो, इस अवस्था में मुझे कब तुम्हारा दर्शन होगा?

पदांकवलोके महालालसौघं

मुकुन्द: करोति स्वयं ध्येयपाद:।

पदं राधिके ते सदा दर्शयान्त-

र्हृदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ।।7।।

अर्थ – श्रीराधिके! यद्यपि श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण स्वयं ही ऎसे हैं कि उनके चारुचरणों का चिन्तन किया जाए, तथापि वे तुम्हारे चरणचिह्नों के अवलोकन की बड़ी लालसा रखते हैं। देवि! मैं नमस्कार करता हूँ। इधर मेरे अन्त:करण के हृदय-देश में ज्योतिपुंज बिखेरते हुए अपने चिन्तनीय चरणारविन्द का मुझे दर्शन कराओ।

सदा राधिकानाम जिह्वाग्रत: स्यात्

सदा राधिका रूपमक्ष्यग्र आस्ताम् ।

श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्त:स्वभावे

गुणा राधिकाया: श्रिया एतदीहे ।।8।।

अर्थ – मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर सदा श्रीराधिका का नाम विराजमान रहे। मेरे नेत्रों के समक्ष सदा श्रीराधा का ही रूप प्रकाशित हो। कानों में श्रीराधिका की कीर्ति-कथा गूँजती रहे और अन्तर्हृदय में लक्ष्मी-स्वरूपा श्रीराधा के ही असंख्य गुणगणों का चिन्तन हो, यही मेरी शुभ कामना है।

इदं त्वष्टकं राधिकाया: प्रियाया:

पठेयु: सदैवं हि दामोदरस्य।

सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि

सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूला:।।9।।

।।इति श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्रविरचितं श्रीराधाष्टकं सम्पूर्णम् ।।

अर्थ – दामोदरप्रिया श्रीराधा की स्तुति से संबंध रखने वाले इन आठ श्लोकों का जो लोग सदा इसी रूप में पाठ करते हैं, वे श्रीकृष्णधाम वृन्दावन में युगल सरकार की सेवा के अनुकूल सखी-शरीर पाकर सुख से रहते हैं।

। इस प्रकार श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्रविरचित श्रीराधाष्टक संपूर्ण हुआ ।

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Astologer cum Vastu vid Harshraj Solanki
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