Shri Durga Saptashati - Chandi Pathaमाँ दुर्गा पुजा Ath Navarna Vidhi~अथ नवार्णविधिः 238 views0 Share ॥अथ नवार्णविधिः॥ इस प्रकार रात्रिसूक्त और देव्यथर्वशीर्ष का पाठ करने के पश्चात्निम्नांकितरूपसे नवार्णमन्त्र के विनियोग, न्यास और ध्यान आदि करें। ॥विनियोगः॥ श्रीगणपतिर्जयति। “ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः,गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्योदेवताः, ऐं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।”इसे पढ़कर जल गिराये।नीचे लिखे न्यासवाक्यों में से एक-एक का उच्चारण करके दाहिने हाथ की अँगुलियों से क्रमशः सिर, मुख, हृदय, गुदा, दोनों, चरण और नाभि – इन अंगों का स्पर्श करें।॥ऋष्यादिन्यासः॥ ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः, शिरसि।गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः मुखे। महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः, हृदि।ऐं बीजाय नमः, गुह्ये। ह्रीं शक्तये नमः, पादयोः।क्लीं कीलकाय नमः, नाभौ।“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”– इस मूलमन्त्र से हाथों की शुद्धि करके करन्यास करें।॥करन्यासः॥करन्यास में हाथ की विभिन्न अँगुलियों, हथेलियों और हाथ के पृष्ठभाग में मन्त्रों का न्यास (स्थापन) किया जाता है; इसी प्रकार अंगन्यास में ह्रदयादि अंगों में मन्त्रों की स्थापना होती है। मन्त्रों को चेतन और मूर्तिमान् मानकर उन-उन अंगों का नाम लेकर उन मन्त्रमय देवताओं का ही स्पर्श और वन्दन किया जाता है, ऐसा करने से पाठ या जप करनेवाला स्वयं मन्त्रमय होकर मन्त्रदेवताओं द्वारा सर्वथा सुरक्षित हो जाता है। उसके बाहर-भीतर की शुद्धि होती है, दिव्य बल प्राप्त होता है और साधना निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण तथा परम लाभदायक होती है। ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः।ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः।ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।॥हृदयादिन्यासः॥ इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से हृदय आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है।ॐ ऐं हृदयाय नमः।ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।ॐ क्लीं शिखायै वषट्।ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम्।ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट्।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्।॥अक्षरन्यासः॥ निम्नांकित वाक्यों को पढ़कर क्रमशः शिखा आदि का दाहिने हाथ की अँगुलियों से स्पर्श करें।ॐ ऐं नमः, शिखायाम्।ॐ ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे।ॐ क्लीं नमः, वामनेत्रे।ॐ चां नमः, दक्षिणकर्णे।ॐ मुं नमः, वामकर्णे।ॐ डां नमः, दक्षिणनासापुटे।ॐ यैं नमः, वामनासापुटे।ॐ विं नमः, मुखे।ॐ च्चें नमः, गुह्ये।इस प्रकार न्यास करके मूलमन्त्र से आठ बार व्यापक (दोनों हाथों द्वारा सिर से लेकर पैर तक के सब अंगों का) स्पर्श करें, फिर प्रत्येक दिशा में चुटकी बजाते हुए न्यास करें- ॥दिङ्न्यासः॥ ॐ ऐं प्राच्यै नमः।ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः।ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः।ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः।ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः।ॐ क्लीं वायव्यै नमः।ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः।ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः।*॥ध्यानम्॥ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरःशङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकांयामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्॥१॥ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकांदण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननांसेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्॥२॥ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकंहस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥३॥ भगवान् विष्णु के सो जानेपर मधु और कैटभ को मारने के लिये कमल जन्मा ब्रह्माजी ने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवी का मैं सेवन करता हूँ। वे अपने दस हाथों में खड्ग , चक्र, गदा , बाण, धनुष , परिध , शूल , भुशुण्डि , मस्तक और शंख धारण करती है । उनके तीन नेत्र हैं । वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं । उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान है तथा वे दस मुख और दस पैरों से युक्त हैं ॥१॥ मैं कमल के आसनपर बैठी हुई प्रसन्न मुखवाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूँ , जो अपने हाथों में अक्षमाला , फरसा , गदा , बाण , वज्र, पद्म , धनुष , कुण्डिका , दण्ड , शक्ति , खड्ग , ढ़ाल , शंख . घण्टा , मधुपात्र , शूल ,पाश और चक्र धारण करती है ॥२॥ जो अपने करकमलों में घण्टा , शूल ,हल , शंख ,मूसल , चक्र ,धनुष और बाण धारण करती हैं , शरदऋतु के शोभा सम्पन्न चंद्रमा के समान जिनकी मनोहर कान्ति है, जो तीनों लोकों की आधारभूता और शुम्भ आदि दैत्यों का नाशा करनेवाली हैं तथा गौरी के शरीर से जिनका प्राकट्य हुआ है , उन महासरस्वती देवी का मैं निरंतर भजन करता हूँ ॥३॥फिर “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मन्त्र से माला की पूजा करके प्रार्थना करें- ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनिसाधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।इसके बाद “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मन्त्र का १०८ बार जप करें और- गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि॥इस श्लोक को पढ़कर देवी के वामहस्तमें जप निवेदन करें। Stay Connected What is your reaction? 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