Shri Durga Saptashati - Chandi Pathaमाँ दुर्गा पुजा Durga Saptashati Shashtham Adhyay~श्रीदुर्गासप्तशती – षष्ठोऽध्यायः 240 views0 Share ॥श्रीदुर्गासप्तशती – षष्ठोऽध्यायः॥ ( धूम्रलोचन-वध ) ॥ध्यानम्॥ ॐ नागाधीश्वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावली-भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्।मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परांसर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये॥ “ॐ” ऋषिरुवाच॥१॥इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः।समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात्॥२॥तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः।सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम्॥३॥हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः।तामानय बलाद् दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम्॥४॥तत्परित्राणदः कश्चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः।स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा॥५॥ऋषिरुवाच॥६॥तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः।वृतः षष्ट्या सहस्राणामसुराणां द्रुतं ययौ॥७॥स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम्।जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः॥८॥न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति।ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम्॥९॥देव्युवाच॥१०॥दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान् बलसंवृतः।बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम्॥११॥ऋषिरुवाच॥१२॥इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः।हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका ततः॥१३॥अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका*।ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः॥१४॥ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम्।पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः॥१५॥कांश्चित् करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान्।आक्रम्य* चाधरेणान्यान्* स जघान* महासुरान्॥१६॥केषांचित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी*।तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान् पृथक्॥१७॥विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे।पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः॥१८॥क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना।तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना॥१९॥श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम्।बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः॥२०॥चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः।आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ॥२१॥हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः* परिवारितौ।तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु॥२२॥केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि।तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम्॥२३॥तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते।शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम्॥ॐ॥२४॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्येशुम्भनिशुम्भसेनानीधूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः॥६॥उवाच ४, श्लोकाः २०, एवम् २४,एवमादितः॥४१२॥ छठा अध्याय – Chapter Sixth – Durga Saptashati (धूम्रलोचन वध) महर्षि मेधा ने कहा-देवी की बात सुनकर दूत क्रोध में भरा हुआ वहाँ से असुरेन्द्र के पास पहुँचा और सारा वृतान्त उसे कह सुनाया। दूत की बात सुन असुरेन्द्र के क्रोध का पारावर न रहा और उसने अपने सेनापति धूम्रलोचन से कहा-धूम्रलोचन! तुम अपनी सेना सहित शीघ्र वहाँ जाओ और उस दुष्टा के केशों को पकड़कर उसे घसीटते हुए यहाँ ले आओ। यदि उसकी रक्षा के लिए कोई दूसरा खड़ा हो, चाहे वह देवता, यक्ष अथवा गन्धर्व ही क्यों न हो, उसको तुम अवश्य मार डालना। महर्षि मेधा ने कहा-शुम्भ के इस प्रकार आज्ञा देने पर धूम्रलोचन साठ हजार राक्षसों की सेना को साथ लेकर वहाँ पहुँचा और देवी को देख ललकार कर कहने लगा-’अरी तू अभी शुम्भ और निशुम्भ के पास चल! यदि तू प्रसन्नता पूर्वक मेरे साथ न चलेगी तो मैं तेरे केशों को पकड़ घसीटता हुआ तुझे ले चलूँगा।’ देवी बोली-’असुरेन्द्र का भेजा हुआ तेरे जैसा बलवान यदि बलपूर्वक मुझे ले जावेगा तो ऎसी दशा में मैं तुम्हारा कर ही क्या सकती हूँ?’ महर्षि मेधा ने कहा-ऎसा कहने पर धूम्रलोचन उसकी ओर लपका, किन्तु देवी ने उसे अपनी हुंकार से ही भस्म कर डाला। यह देखकर असुर सेना क्रुद्ध होकर देवी की ओर बढ़ी, परन्तु अम्बिका ने उन पर तीखें बाणों, शक्तियों तथा फरसों की वर्षा आरम्भ कर दी, इतने में देवी का वाहन भी अपनी ग्रीवा के बालों को झटकता हुआ और बड़ा भारी शब्द करता हुआ असुर सेना में कूद पड़ा, उसने कई असुर अपने पंजों से, कई अपने जबड़ों से और कई को धरती पर पटककर अपनी दाढ़ों से घायल कर के मार डाला, उसने कई असुरों के अपने नख से पेट फाड़ डाले और कई असुरों का तो केवल थप्पड़ मारकर सिर धड़ से अलग कर दिया। कई असुरों की भुजाएँ और सिर तोड़ डाले और गर्दन के बालों को हिलाते हुए उसने कई असुरों को पकड़कर उनके पेट फाड़कर उनका रक्त पी डाला। इस प्रकार देवी के उस महा बलवान सिंह ने क्षणभर में असुर सेना को समाप्त कर दिया। शुम्भ ने जब यह सुना कि देवी ने धूम्रलोचन असुर को मार डाला है और उसके सिंह ने सारी सेना का संहार कर डाला है तब उसको बड़ा क्रोध आया। उसके मारे क्रोध के ओंठ फड़कने लगे और उसने चण्ड तथा मुण्ड नामक महा असुरों को आज्ञा दी-हे चण्ड! हे मुण्ड! तुम अपने साथ एक बड़ी सेना लेकर वहाँ जाओ और उस देवी के बाल पकड़कर उसे बाँधकर तुरन्त यहाँ ले आओ। यदि उसको यहाँ लाने में किसी प्रकार का सन्देह हो तो अपनी सेना सहित उससे लड़ते हुए उसको मार डालो और जब वह दुष्टा और उसका सिंह दोनो मारे जावें, तब भी उसको बाँधकर यहाँ ले आना। इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्येशुम्भनिशुम्भसेनानीधूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः॥६॥उवाच ४, श्लोकाः २०, एवम् २४,एवमादितः॥४१२॥ Stay Connected What is your reaction? 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