Shri Durga Saptashati - Chandi Pathaमाँ दुर्गा पुजा Saptashati Nyasah~सप्तशतीन्यासः 259 views0 Share ॥सप्तशतीन्यासः॥ तदनन्तर सप्तशती के विनियोग, न्यास और ध्यान करने चाहिये। न्यास की प्रणाली पूर्ववत् है-॥विनियोगः॥ प्रथममध्यमोत्तरचरित्राणां ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, नन्दाशाकम्भरीभीमाः शक्तयः, रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामर्यो बीजानि, अग्निवायुसूर्यास्तत्त्वानि,ऋग्यजुःसामवेदा ध्यानानि, सकलकामनासिद्धयेश्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा।शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा॥ अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥ तर्जनीभ्यां नमः।ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे।भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि॥ मध्यमाभ्यां नमः।ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते।यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम्॥ अनामिकाभ्यां नमः।ॐ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके।करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः॥ कनिष्ठिकाभ्यां नमः।ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ करतलकरपृष्ठाभ्यां।ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा॰ – हृदयाय नमः।ॐ शूलेन पाहि नो देवि॰ – शिरसे स्वाहा।ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च॰ – शिखायै वषट्।ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि॰ – कवचाय हुम्।ॐ खड्गशूलगदादीनि॰ – नेत्रत्रयाय वौषट्।ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे॰ – अस्त्राय फट्।॥ध्यानम्॥ ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणांकन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनींबिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥इसके बाद प्रथम चरित्र का विनियोग और ध्यान करके “मार्कण्डेय उवाच” से सप्तशती का पाठ आरम्भ करें। प्रत्येक चरित्र का विनियोग मूल सप्तशती के साथ ही दिया गया है तथा प्रत्येक अध्याय के आरम्भ में अर्थसहित ध्यान भी दे दिया गया है। पाठ प्रेमपूर्वक भगवती का ध्यान करते हुए करें। मीठा स्वर, अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण, पदों का विभाग, उत्तम स्वर, धीरता, एक लय के साथ बोलना – ये सब पाठकों के गुण हैं।* जो पाठ करते समय रागपूर्वक गाता, उच्चारण में जल्दबाजी करता, सिर हिलाता, अपनी हाथ से लिखी हुई पुस्तक पर पाठ करता, अर्थ की जानकारी नहीं रखता और अधूरा ही मन्त्र कण्ठस्थ करता है, वह पाठ करनेवालों में अधम माना गया है।* जबतक अध्याय की पूर्ति न हो, तबतक बीच में पाठ बन्द न करें। यदि प्रमादवश अध्याय के बीच में पाठ का विराम हो जाय तो पुनः प्रति बार पूरे अध्याय का पाठ करें।*अज्ञानवश पुस्तक हाथ में लेकर पाठ करने का फल आधा ही होता है। स्तोत्र का पाठ मानसिक नहीं, वाचिक होना चाहिये। वाणी से उसका स्पष्ट उच्चारण ही उत्तम माना गया है।* बहुत जोर-जोर से बोलना तथा पाठ में उतावली करना वर्जित है। यत्नपूर्वक शुद्ध एवं स्थिरचित्तसे पाठ करना चाहिये।* यदि पाठ कण्ठस्थ न हो तो पुस्तक से करें। अपने हाथ से लिखे हुए अथवा ब्राह्मणेतर पुरुष के लिखे हुए स्तोत्र का पाठ न करें।* यदि एक सहस्र से अधिक श्लोकों का या मन्त्रों का ग्रन्थ हो तो पुस्तक देखकर ही पाठ करें; इससे कम श्लोक हों तो उन्हें कण्ठस्थ करके बिना पुस्तक के भी पाठ किया जा सकता है।* अध्याय समाप्त होने पर “इति”, “वध”, “अध्याय” तथा “समाप्त” शब्दका उच्चारण नहीं करना चाहिये।* Stay Connected What is your reaction? INTERESTING 0 KNOWLEDGEABLE 0 Awesome 0 Considerable 0 improvement 0 Astologer cum Vastu vid Harshraj SolankiJivansar.com is a website founded by Mr. Harshraj Solanki the main aim of the astrological website is to aware people about genuine astrological knowledge and avoid misconception regarding astrology and spirituality.By his genuine practical and Scientific knowledge of astrology,people gets benefit and appreciate his work very much as well as his website for analysing any Kundli very scientifically and gives powerful remedies. His predictions are very real deep observed and always try to give traditional scientific remedies which is based on Biz Mantra,Tantrik totka Pujas,Yoga Sadhana,Rudraksha and Gems therapy. Website Facebook