Kavach Sangrah कवच संग्रह Shri Ram Maharaksha Kavach~श्री राम महारक्षा कवच 279 views0 Share || श्री राम महारक्षा कवच || श्री रामरक्षास्त्रोत – ॐ श्री राजा रामचन्द्राय नम: “”ॐ जानकी वल्लभाय नम: ॐ दशरथ तनय नम: ॐ अवधेशाय नम: ॐ कौश्लेंद्राय नम:””” कैसी भी आपद-विपदा हो, श्री “राम रक्षा कवच” का पाठ करें, राम जी अच्छा ही करेंगे इससे चमत्कारी रक्षा कवच और कोई हो ही नहीं सकता— !! श्री राम रक्षा कवच !! कानन भूधर बारि बयारि महाविष व्याधि दवा अरि घेरे, संकट कोटि जहाँ तुलसी सुत मातपिता हित बन्धु न नेरे ! राखिहैं राम कृपालु तहां हुनुमान से सेवक हैं जेहि केरे, नाक रसातल भूतल माह रघुनायक एक सहायक मेरे !! —————————————————— श्रीरामरक्षा स्तोत्रं— ॥ ऊँ श्रीगणेशाय् नमः ॥ अस्य् श्रीराम् रक्षा स्तोत्रमन्त्रस्य। बुधकौशिक् ऋषिः । श्रीसीतारामचंद्रो देवता । अनुष्टुप् छंदः । सीता शक्तिः। श्रीमद् हनुमान कीलकम्। श्रीरामचंद्र्प्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः॥ ॥अथ धयानम् ॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बध्दपद्मासनस्थम् । पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्। वामांकारुढ सीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभम् । नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडनं रामचंद्रम्॥ ॥इति ध्यानम्॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥१॥ ध्यात्वा नीलोत्पलशयामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्॥२॥ सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् । स्वलील्या जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥३॥ रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्। शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥ कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥ जिव्हां विधानिधिः पातु कंठं भरतवंदित:। स्कंधौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेश्कार्मुक:॥६॥ करौ सीतापतिः पातु ह्रूदयं जामदग्न्यजित्। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥ सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:। ऊरु रघुत्तम: पातु रक्षःकुलविनाशकृत्॥८॥ एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुक्रुती पठेत्। स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥१०॥ पातालभुतलव्योम,चारिणश्छ्धचारिण:। न द्रुष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि:।११॥ रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्। नरो न लिप्य्ते पापे: भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥१२॥ जगजैत्रैमत्रेण राम्नाम्नाभिरक्षितम्। य: कंठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिध्दय: ॥१३॥ वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्। अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम ॥१४॥ आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षांमिमां हर:। तथा लिखितवान् प्रात: प्रभुध्दो बुधकौशिक: ॥१५॥ आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् । अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥ तरुणौ रुपसंपन्नौ सुकुमरौ महाबलौ। पुंडरीकविशालाक्षौ चिरकृष्णाजिनाम्बरौ॥१७॥ फलमुलाशिनौ दान्तौ तापसौ बृह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्षमणौ ॥१८॥ शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठो सर्वधनुष्मताम्। रक्ष: कुलनिहंतारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ॥१९॥ आत्तसज्जधनुषा,विषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंसंगिनौ। रक्षणाय मम रामलक्षमणावग्रत: पथि सदैव गचछताम् ॥२०॥ सन्नध्द: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन्मनोरथोस्माकं राम: पातु सलक्षमण:॥२१॥ रामो दाशरथि: शुरो लक्षमणानुचरो बली। काकुत्स्थ: पुरुष: पुर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम:॥२२॥ वेदान्तवेधो यज्ञेश: पुराणपुरुषोतम:। जानकीवल्लभ: श्रीमान् अप्रमेय प्रराक्रम: ॥२३॥ इत्येतानि जपन्नित्यं मड्भ्क्त: श्रध्दयान्वित:। अश्वमेधाधिकं पुण्यं स्ंप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥ रामं लक्षमणपुर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरम् । काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्। राजेंद्रम् सत्यसंधं दशरथतनयं शयमलं शांतमूर्तिम्। वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥ रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथय सीताया: पतये नम: ॥२७॥ श्रीराम राम रघुनंदन राम राम। श्रीराम राम भरताग्रज राम् राम्। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम। श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥ श्रीरामचंद्रचरणौ मनसा स्मरामि। श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि। श्रीरामचंद्रचरणौ शिरसा नममि। श्रीरामचंद्रचरणौ शरंण प्रपघे॥२९॥ माता रामो मत्पिता रामचंद्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:। सर्वस्वं मे रामचंद्रो दयालु:। नान्य्ं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥ दक्षिणे लक्षमणो यस्य वामे तु जनकात्मजा। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥ लोकाभिरामं रणरंगधीरम्। राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरुप्ं करुणाकरं तम्। श्रीरामचंद्रम् शरणं प्रपद्ये ॥३२॥ मनोजवं मारुततुल्यवेगम्। जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयुथमुख्यम्। श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥ कुजंतं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्। आरुह्य काविताशाखां वंदे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥ आपदां अपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥३५॥ भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसमप्दाम् । तर्जनं यमदूतानां राम् रामेति गर्जनम् ॥३६॥ रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे। रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:। रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहम्। रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुध्दर् ॥३७॥ राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥ इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥ राम रक्षा स्तोत्रं का हिंदी अनुवाद विनियोग:- इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं. ध्यानं– जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्दासन की तरह विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम,विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करें. अथ रामरक्षा स्तोत्रं– श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं. उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है. नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र , जटाओं के मुकुट से सुशोभित जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके. जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके. मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ. राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें. कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें. मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें. मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की परशुराम को जीतने वाले, मध्य भाग की खर के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें. मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और रानों की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें. मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें. शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान , विजयी और विनयशील हो जाता हैं.जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते. राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता. इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है. जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं. जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं. भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया. जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं और जो तीनो लोकों में सुन्दर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं. जो युवा,सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं. जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें. ऐसे महाबली – रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारा त्राण करें. संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें. हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें. भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम, वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं. दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता. लक्ष्मण जी के पूर्वज , सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ. राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ. हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए. मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ. श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं. इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता. जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ. मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ. जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ. मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ. मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं. ‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं. वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं. राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं. राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं. मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ. सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ. श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं. मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ. मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ. हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें. (शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं. मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ. इति श्रीबुधकौशिक विरचितं श्री राम रक्षा स्तोत्रं सम्पूर्णम. Stay Connected What is your reaction? INTERESTING 0 KNOWLEDGEABLE 0 Awesome 0 Considerable 0 improvement 0 Astologer cum Vastu vid Harshraj SolankiJivansar.com is a website founded by Mr. Harshraj Solanki the main aim of the astrological website is to aware people about genuine astrological knowledge and avoid misconception regarding astrology and spirituality.By his genuine practical and Scientific knowledge of astrology,people gets benefit and appreciate his work very much as well as his website for analysing any Kundli very scientifically and gives powerful remedies. His predictions are very real deep observed and always try to give traditional scientific remedies which is based on Biz Mantra,Tantrik totka Pujas,Yoga Sadhana,Rudraksha and Gems therapy. Website Facebook