Shri Durga Saptashati - Chandi Pathaमाँ दुर्गा पुजा Siddha Samput Mantra~सप्तशतीके कुछ सिद्ध सम्पुट-मन्त्र 292 views0 Share ॥ सप्तशतीके कुछ सिद्ध सम्पुट-मन्त्र ॥ श्रीमार्कण्डेयराणान्तर्गत देवीमाहात्म्य में ‘श्लोक’ , ‘अर्धश्लोक ’ और ‘उवाच ’ आदि मिलाकर ७०० मन्त्र हैं । यह माहात्म्य दुर्गासप्तशती के नाम से प्रसिद्ध है । सप्तशती अर्थ , धर्म , काम , मोक्ष – चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाली है । जो पुरुष जिस भाव और जिस कामना से श्रद्धा एवं विधि के साथ सप्तशती का पारायण करता है , उसे उसी भावना और कामना के अनुसार निश्चय ही फल -सिद्धि होती है । इस बात का अनुभव अगणित पुरुषों को प्रत्यक्ष हो चुका है । यहाँ हम कुछ ऐसे चुने हुए मन्त्रों का उल्लेख करते हैं , जिनका सम्पुट देकर विधिवत् पारायण करने से विभिन्न पुरुषार्थों की व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सिद्धि होती है । इनमें अधिकांश सप्तशती के ही मन्त्र हैं और कुछ बाहर के भी हैं- 1. सामूहिक कल्याण के लिये-देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः॥ 2. विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये-यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥ 3. विश्व की रक्षा के लिये-या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्॥ 4. विश्व के अभ्युदय के लिये-विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः॥ 5. विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये-देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥ 6. विश्व के पाप-ताप-निवारण के लिये-देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः।पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥ 7. विपत्ति-नाश के लिये-शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ 8. विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये-करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः। 9. भय-नाश के लिये- (क) सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥(ख) एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥(ग) ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ 10. पाप-नाश के लिये-हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव॥ 11. रोग-नाश के लिये-रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥ 12. महामारी-नाश के लिये-जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥ 13. आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये-देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ 14. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये-पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥ 15. बाधा-शान्ति के लिये-सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥ 16. सर्वविध अभ्युदय के लिये-ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः।धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥ 17. दारिद्र्यदुःखादिनाश के लिये-दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोःस्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्यासर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥ 18. रक्षा पाने के लिये-शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥ 19. समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये-विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः॥ 20. सब प्रकार के कल्याण के लिये-सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ 21. शक्ति-प्राप्ति के लिये-सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥ 22. प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये-प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि। त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव॥ 23. विविध उपद्रवों से बचने के लिये-रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥ 24. बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये-सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः।मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥ 25. भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये-विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ 26. पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये-नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ 27. स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये-सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥ 28. स्वर्ग और मुक्ति के लिये-सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते।स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ 29. मोक्ष की प्राप्ति के लिये-त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया।सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥ 30. स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये-दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥ Stay Connected What is your reaction? 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