ऋग्वेद का एक मंत्र दर्शाता है- ‘सप्त युत्रजन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनाम’ भावार्थ है कि सूर्य जिस रथ पर सवार है उसमें मात्र एक पहिया है। उसमें जुता एक घोड़ा है जिसका नियंत्रण सात लगामों द्वारा किया जा रहा है। इतने पुराने ग्रंथ के इस उल्लेख को एक यूनानी कथा भी पुष्टि करती है जिसमें तथ्य स्पष्ट हैं, ‘मंद वायु बहने लगी है। पूर्व में प्रकाश बढ़ता जा रहा है। इस समय उषा की देवी ‘एओस’ अपने स्वर्णिम हाथों से द्वार खोलती है जहां से तेजस्वी सूर्य देवता अपने रथ पर निकलने वाला है। सुंदर लाल कपड़े पहने हुए अपने गुलाबी पंखों पर उषा की देवी उज्जवल आकाश में उड़ जाती है। धरती सूर्य देवता हीलियस के उदय का प्रसन्नता से स्वागत करती है। ‘ अब दोनों कथाओं और आधुनिक विज्ञान का संगम देखिए। पहले यूनानी शब्द एओस को ही लीजिए कथा यूनानी एओस और वैदिक शब्द ‘उषस्’ में समानता नजर नहीं आती जो आज के भौतिक विज्ञान के शब्द उष्मा का ही रूप है। अब सात लगामों वाले घोड़े के रथ की चर्चा की जाए। आज का विज्ञान इस रहस्य को खोलता है और इसकी वैज्ञानिक सार्थकता ऊष्मा यानी ऊर्जा के रूप में बताता है। पुष्टि है कि सूर्य की सात किरणें ही उसकी सात लगाम हैं। सूर्य का प्रकाश देखने पर वस्तु रोशन करता सफेद माना जा सकता है। मगर मूलत: ऐसा नहीं है उसमें सात रंग छिपे हुए हैं। बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल रंग विभिन्न तरंगदैध्यों यानी वैज्ञानिक भाषा में विभिन्न वेव लेंग्थ में है। जब यह सूर्य से चल कर गति लिए आता है तो तीव्रता इतनी है कि वह एक रंग हो जाता है। ठीक बिजली के उस गतिशील पंखे की तरह जिसमें तीन ब्लेड्स हैं मगर नजर नहीं आता। ठीक इसी प्रकार सूर्य की किरणों में निहित विभिन्न तरंग दैर्ध्य के रंग हैं। वैज्ञानिक पुष्टि है कि विभिन्न तरंग दैर्ध्य की एक अलग ऊर्जा होती है। सूर्य के अंतरंग में समाई भीषण उष्मा में हाइड्रोजन गैस के परमाणु विखंडित होते हैं जो इसी प्रक्रिया में लगातार हीलियम में बदलते रहते हैं। सूर्य की ऊर्जा ही अपनी भीषण गरमाहट दे धरती को तपाती है, त्राहि-त्राहि करती है। आज की ग्लोबल वार्मिंग उसी की देन है। चूंकि भारतीय संस्कृति में सूर्य देव है और मान्यता है कि देवताओं का क्रोध भी वरदान तुल्य होता है। भीषण गरमाहट का यही वरदान अंत में रिमझिम बरसात देता है धरती में बीज पैदा करने की सामर्थ्य रखता है जो जीव जगत के भोजन का आधार है।