यह तथ्य है कि सूरज की अति सक्रियता और धरती की जलवायु बीच गहरा संबंध है। जब जब सूरज में सक्रियता बढ़ी है धरती में बदलाव आए हैं। आखिर यह अति सक्रियता क्या है ? क्यों दमकते सूरज पर काली रेखाएं उभरती हैं ? क्यों सूरज को गुस्सा आता है ?
वैज्ञानिक शोध के अनुसार सूरज निरंतर सक्रिय स्थिति में रहता है।बिना रूके बिना थके। हालांकि यह सक्रियता अधिकांश समान स्वरूप लिए रहती है मगर कई बार अचानक यह सक्रियता सीमा की हद पार कर बढ़ जाती है। यह सक्रियता ही उसके बाह्य स्वरूप पर खिंचाव की रेखाओं में स्पष्ट होती है। यह तथ्य सूरज के स्वरूप का लेखाजोखा रखने वाले रखते हैं। इन्हीं आंकड़ों के अनुसार सूरज का यह गुस्से वाला विकराल स्वरूप ग्यारह वर्षों बाद स्पष्ट होता है अतः इसे ग्यारह वर्षीय चक्र के नाम से जाना जाता है। कुछ वैज्ञानिकों और इतिहासकारों ने यह भी बताया है कि सूरज का यह गुस्सा धरती पर महायुद्ध और प्रलय की स्थिति लाता है। 12 जुलाई 1999 को एक सुबह धरती को एक अनोखे तूफान ने घेरा था जो सूरज के आते विकिरण का था। इस स्थिति का भान कराया सोहो नामक एक संस्था ने जो असल में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा स्थापित की गई। यह असल में एक अंतरिक्ष वेधशाला थी जिसे सोलर एण्ड हीलियोग्राफिक ऑब्जर्वेटरी (सोहो) नाम दिया गया। इससे प्राप्त आंकड़ों के अनुसार सूरज से विशाल ज्वालाएं निकलती हैं जो कभी हल्का तो कभी विकराल स्वरूप धारण कर लेती है। जब यह महाज्वाला के रूप में होती है तो सूरज की सक्रियता बढ़ जाती है। महाज्वालाओं से निकलने वाला विकिरण स्वरूप धारण कर लेती है। जब यह महाज्वाला के रूप में होती है तो सूरज की सक्रियता बढ़ जाती है। महाज्वालाओं से निकलने वाला विकिरण असल में विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा (इलैक्ट्रो मेग्नेटिक एनर्जी) है। वैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि सूरज के भीतरी प्रकोष्ठ में चुम्बकीय तरंगें है जो लगातार बाहर आने का प्रयास करती रहती हैं मगर उसके अंदर की गैसें उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं। मगर एक स्थिति वो भी आती है जब सूरज के अंदर की यह चुम्बकीय तरंगे बाहर आने लगती हैं। यही वो दशा है जब गैसों में भी ऊर्जा भर जाती है, यह दशा आग की भीषण लपटों यानी महाज्वालाओं के रूप में स्पष्ट होती है। रिपोर्ट के अनुसार एक मामूली महाज्वाला भी सौ मेगाटन शक्ति वाले लाखों हाइड्रोजन बमों के विस्फोट के बराबर ऊर्जा अंतरिक्ष में बिखेर देती है। अगर सूरज की यही क्रोध भरी लपटें धरती के वातावरण को चीरकर आ घुसें तो धरती का नामोनिशान मिटा दें। यही ज्वालाएं सूरज के बाह्य मंडल पर उभरती है। अगर धरती के वायुमंडल में ओजोन का सुरक्षा कवच न हो तो यह कि धरती इससे अछूती रहती है। इन ज्वालाओं का विकरण गंभीर अवस्था चंद मिनटों में धरती तक जा पहुंचे और अपना कहर दिखा दें। ऐसा नहीं है। ठंड या गर्मी इन्हीं की देन होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 1500 से में धरती की जलवायु में बदलाव पैदा कर देता है। बेमौसमी ठंड, भीषण 1850 के मध्य धरती का औसत तापमान एकदम गिर गया था जिसे आज भी लघु हिमयुग के नाम से जाना जाता है। यह धरती पर एक भीषण कहर था। सूरज के गर्म गुस्से का यह ठंडा अहसास धरती के लिए लगभग प्रलय की स्थिति ला चुका था। यही नहीं धरती के उत्तरी ध्रुव के दस किलोमीटर ऊपर के तापमान और सूरज की सक्रियता के बीच भी संबंध होने के संकेत मिले हैं। जब जब पृथ्वी की जलवायु में गंभीर परिवर्तन देखने को मिले हैं। ग्यारह वर्षीय चक्र का आकलन स्पष्ट हुआ है। क्या यह वर्ष ग्यारह वर्षीय चक्र की शुरूआत है जो सुनामी लहरों का कहर सामने आया। क्या एक गंभीर भूकंप की संभावना इसी ग्यारह वर्षीय चक्र के आधार पर है ? सूरज का प्रकोप क्या धरती पर यों आएगा। हालांकि वैज्ञानिकों का एक वर्ग इसे मानने से झिझकता है, मगर इनकार करने से भी झिझकता है। सूरज को तरसती धरती और सूरज के कहर के रिश्ते, आज भी रहस्य हैं। मगर यह तय है कि कहीं न कहीं सूरज की अति सक्रियता धरती को सामान्य स्थिति में नहीं रहने देती। अब चाहे यह बढ़ते प्रदूषण या जलवायु असंतुलन के रूप में प्राकृतिक आपदाएं लाए या फिर मानव मस्तिष्क को प्रभावित करें और मानव निर्मित कहर सामने आ जाएं।