कालसर्प योग विश्लेषण
राहू और केतु छाया ग्रह सूर्य और चंद्रमा से जुड़े हुए हैं। सूर्य और चंद्रमा कुंडली में ही नहीं हमारे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के लिए भी बहुत जरूरी है इसी दो ग्रह के कारण हमारी पृथ्वी पर सारी भौगोलिक घटनाएं संभव हो पाती हैं।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,कुंडली में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है और चंद्रमा को मन का कारक माना गया है।खगोलीय भाषा में समझे तो जिस पथ पर पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा जिस पथ पर पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करती है उस कटाव बिंदु (intersection point)के एक अक्ष या बिंदु को राहु एवं दूसरे अक्ष या बिंदु को केतु कहते हैं।इस विधि में राहु को एक अक्ष और केतु को दूसरा अक्ष मान लिया जाता है।इस तरह राहु को उत्तर और केतु को दक्षिण अक्ष माना गया है। कुंडली के पूर्वी भाग में स्थित ग्रह प्रकृति रूप से सूर्य से प्रभावित होती हैं और आधे पश्चिमी भाग में स्थित ग्रह प्रकृति रूप से चंद्र से प्रभावित होती हैं।इसका प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है कि यदि सभी ग्रह केवल राहू-केतु के मध्य एक आधे भाग में आ जाये तो असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाएगी। साधारण शब्दों में,जब भी सभी ग्रह जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य में स्थित होते हैं तो इस ग्रह संयोग को कालसर्प योग कहते है,इस ग्रह संयोग द्वारा उत्पन्न जातक जीवन में अति संधर्ष के बाद सफल हो पाता है।जैसा कि हम देख सकते हैं कि इस ग्रह संयोग से जातक एक तरफा व्यक्तित्व का हो जाता है उसमें संपूर्णता नहीं रह जाती है,उसकी प्रवृत्ति या प्रकृति जो भी हो उसका झुकाव एक ओर ज्यादा होगा और इस तरह उसके व्यक्तित्व में असंतुलनता कि अवस्था आ जाती है। दूसरे शब्दों में, जातक सचेन या अचेतन तरीके से खुद में खो या फंस सा जाता है । यही कारण है कि प्राचीन ऋषि ने इसे एक विशेष घटनाक्रम के रूप में माना है।
कालसर्प दोष अपने अशुभ प्रभावों जैसे कि अस्थिर जीवन,वित्तीय कठिनाइयां,परेशानी एवं कलेश से भरा विवाहित जीवन, लाइलाज बीमारी और मानसिक अशांति को जन्म देता है। ज्यादातर मामलों में काल सर्प दोष 47 साल तक किसी व्यक्ति को प्रभावित करता है और कुछ मामलों में कुंडली के अन्य ग्रहों की स्थिति के आधार पर जीवन भर अपना प्रभाव बनाये रखता है।
प्राचीन एवं आधुनिक ज्योतिष शास्त्रों के द्वारा कुल बारह प्रकार के कालसर्प दोष बताए गए हैं -
1) अनंत कालसर्प दोष -
अनंत कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु पहले भाव में और केतु सातवा भाव में मौजूद हो जबकि शेष ग्रह कुंडली की (अक्ष की)बाईं ओर हो। । इस ग्रह योग से वैवाहिक जीवन, आर्थिक हानि, हीन भावना और चिंता से परेशानी बनी रहती हैं।
2) कुलिक कालसर्प दोष -
कुलिक कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु दुसरे भाव में हो और केतु आठवें भावमें स्थित हो। इस ग्रह योग से, दुर्घटनाएं अस्थिरता,वित्तीय परेशानियाँ,प्रतिष्ठा में कमी, असाध्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना होता हैं।
3) वासुकी कालसर्प दोष -
वासुकी कालसर्प योग तब कहलाता है जब राहु तीसरे भाव और केतु नवें भाव में स्थित हो, इस ग्रह योग से रक्तचाप से पीड़ित,असामयिक मृत्यु की सम्भावना हो सकती है,अचानक वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
4) शंखपाल कालसर्प दोष -
शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु चतुर्थ भाव में हो और केतु दशम भाव में स्थित हो,जबकि शेष ग्रह इस अक्ष के बाईं ओर स्थित हो,इस ग्रह योग से असामयिक मृत्यु,अचानक व्यापार में घाटा या वित्तीय नुकसान और रक्तचाप से पीड़ित रहना पड़ता है।
5) पदम् कालसर्प दोष -
पदम् कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु पांचवें भाव में एवं केतु ग्यारहवें भाव में स्थित हो। इससे जातक को पेट से संबंधित समस्याएं हो जाती हैं, व्यक्ति को शिक्षा में बाधा का सामना करना पड़ता है, बेकार का डर और चिंता के कारण जातक ज्यादा अस्त व्यस्त रहता है।
6) महापद्म कालसर्प दोष -
महापद्म कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु छठे भाव में एवं केतु बारहवें भाव में स्थित हो।इस ग्रह योग से, कुंडली में जातक के कई दुश्मन अनायास ही बन जाते हैं और पुरानी बीमारी से पीड़ित रहते है।कोट कचहरी का भी चक्कर लगा रहता है।
7) तक्षक कालसर्प दोष -
तक्षक कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु सातवें भाव में एवं केतु पहले भाव में स्थित हो।यह ग्रह योग के कारण शादी में देरी, धोखा और बाधा का सामना करना पड़ता है। जातक का शराबी प्रवृत्ति के कारण स्वास्थ्य खराब हो जाता है और जुआ खेलने की प्रवृत्ति के कारण धन का विनाश हो जाता है।
8) कर्कोटक कालसर्प दोष -
कर्कोटक कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु आठवें भाव में एवं केतु दूसरे भाव में स्थित हो। यह योग सामाजिक प्रतिष्ठा में गिरावट, दोस्तों की कमी और भूत-पिचाश का सपनों में देखना या अपनी निजी जीवन का में इसका(भूत-पिचाश का)अनुभव होना इस ग्रह योग का परिणाम है।
9) शंखचूड कालसर्प दोष -
शंखचूड कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु नवे भाव में एवं केतु तीसरे भाव में स्थित हो। जातक को झूठ बोलने की प्रवृत्ति वाला बनाता है,धार्मिक विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहता है और जातक के भाग्य में बाधा बना रहता है।
10) घटक कालसर्प दोष -
घटक कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु दसवें भाव में एवं केतु चौथे भाव में स्थित हो तो इस ग्रह योग के कारण हमेशा काम में देरी हो सकती है। घरेलू अशांति बनी रहने की पूरी सम्भावना रहेगी ।जातक निष्क्रिय और शारीरिक रूप से व्यर्थ का व्यस्त महसूस करता हैं।
11) विषधर कालसर्प दोष -
विषधर कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु ग्यारहवें भाव में हो एवं केतु पांचवें भाव में स्थित हो।इस ग्रह योग से जातक चंचल और अस्थिर चित्त वाला होता है। वह अक्सर यात्रा करता है। इस ग्रह योग में जन्मा जातक को कारावास की सजा हो सकती है लेकिन इस ग्रह योग के जातक को 50 वर्ष की आयु के बाद सफलता मिलती है।
12) शेषनाग कालसर्प दोष -
शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण तब होता है जब राहु बारहवें भाव में एवं केतु छठे भाव में स्थित हो।एसे ग्रह योग से,पुरानी बीमारी के कारण जातक को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं देता है।पैसा आता है लेकिन आते ही खर्च हो जाता है। जातक के ऊपर दुश्मन या इनके विरोधी आसानी से हावी हो जाते है।
शराब और मांसाहारी भोजन से परहेज के माध्यम से कालसर्प के बुरे प्रभाव से कुछ हद तक छुटकारा पाया जा सकता है।पीड़ित ग्रह के मंत्र का जाप करते हुए नियमित रूप से भगवान शिव के मंदिर जाएं। काल सर्प पूजा करे या करवाए । मानसिक शांति के लिए प्राणायाम और ध्यान जैसे योग का अभ्यास करें।
(कालसर्प दोष का अशुभ प्रभाव प्रत्येक कुंडली में विभिन्न ग्रह दशा के कारण भिन्न-भिन्न होता है इसके अलावा कुंडली में अन्य ग्रह योग,अन्य भाव एवं राशियों में बैठे ग्रह का भी अध्ययन कर लिया जाना चाहिए तथा अन्य वर्ग कुंडलियों का विश्लेषण कर जातक के जीवन संबंधी शुभ या अशुभ प्रभाव का सटीक मूल्यांकन कर कालसर्प दोष की तीव्रता की शांति का उपाय अवश्य करना या करवाना चाहिए ताकि जीवन में उत्पन्न बाधा एवं संघर्ष को कम कर जातक उन्नति कर सके)|