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ज्योतिषीय चिकित्सा

ज्योतिषीय रूप से, मानव शरीर को पिंड(माइक्रोकॉमोस)कहा जाता है और संपूर्ण ब्रह्माण्ड, जो क्रमशः पंच भूतों जैसे-आकाश,वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी (ईथर, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) से युक्त हैं हमारे भौतिक शरीर में मौजूद है। बृहस्पति, शनि, सूर्य और मंगल, चंद्र,शुक्र और बुध जैसे ग्रह ऊपर दिए गए अलग-अलग तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं।वास्तविक सौर जगत एवं ब्रह्माण्ड के ग्रहों के भ्रमण करने में जो नियम कार्य करते हैं वही नियम प्राणी मात्र के शरीर में भी कार्य करते हैं अतः अकाशीय स्थित ग्रह-नक्षत्र शरीर में स्थित ग्रहों के प्रतीक है|ये ग्रह मानव शरीर के विभिन्न हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब विभिन्न तत्व और ग्रहों के ऊर्जा के बीच असंतुलन होता है तो विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के आगमन से पहले, प्राचीन काल में चिकित्सकों(वैध)को विभिन्न चंद्र दिनों(पूर्णिमा)पर और विभिन्न तारकीय दिनों(अमावस्या)में दवाओं के प्रयोग के जानकारी के अलावा ज्योतिष ग्रहों और विभिन्न रोग के बीच के संबंधों की अनिवार्य जानकारी होनी जरूरी थी इसी आधार पर विभिन्न रोग का उपचार होता था। आयुर्वेद में, बीमारी को त्रिदोष में वर्गीकृत किया गया है।

वात दोष -

वात दोष शरीर के सभी गति को प्रभावित करता है।

पित्त दोष -

पित्त दोष शरीर में सभी चयापचय प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार है।

कफ़ दोष –

कफ़ दोष शरीर में सभी संरचना और विभिन्न जोड़ों के बीच चिकनाई के लिए जिम्मेदार है।

त्रिदोष के अलावा,विभिन्न ग्रह विभिन्न रोगों के कारक है। विभिन्न राशि और नक्षत्र भी अलग-अलग रोगों का अलग-अलग कारक के रूप में आयुर्वेद में इसकी जानकारी दी गई है। किसी जातक के जन्म पत्रिका के गहरे विश्लेषण के बाद शरीर के विभिन्न हिस्सों में न केवल मौजूदा बीमारी की पहचान की जा सकती है, बल्कि भविष्य में उत्पन्न होने वाली बीमारी के बारे में भी जाना जा सकता है। किसी जातक की जन्म कुंडली से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जातक को कौन-सी निश्चित बीमारी होगी। रोग की शुरुआत के समय की संभावना भी कई वर्षों पहले ही भविष्यवाणी द्वारा सचेत किया जा सकता है, जिससे जातक को समय से पूर्व संबंधित बीमारी एवं इसके रोकथाम में सावधानी बरतने में सहायता मिलेगी, इससे शरीर को रोगी होने से बचाया जा सकता है या रोग की तीव्रता को कम किया जा सकता है।

हमें यह पता होना चाहिए कि कैसे कुंडली में अलग-अलग भाव ,ग्रह ,नक्षत्र और राशियों के माध्यम से मानव शरीर की रचना परिलक्षित होती है/जानकारी मिलती है-

विभिन्न भाव और विभिन्न ग्रहों के युति द्वारा जातक की कुंडली से स्वास्थ्य और बीमारी का पूर्वानुमान।

शास्त्रों में ग्रहों के युति के कारण रोग-

लगने वाले षष्ठात्म्यशौ रवीण • संयोगौ। ज्वरगुंड। कुंजे ग्रंथि: शस्त्रवर्णमतापिवा। बुधेन पित्त्तन गुरू रोगा संभवं अनदिर्शेत। स्त्रीभिषेक्रेण शनीना वायुना समन्वितु •। गंडा शंकडालकोनाभातम्: केत्वोगत्ले भयं। चंद्रेणगंडसलिलै: कफलिंगस्मृतिना भवेत केत्वोगृहे भयं। & पित्रादि भवानन तत्कारोजीत: गंदे तेषां भवेदेवमूत्रत्रमनिषेण च।

यदि छठी और आठवीं भाव के स्वामी लग्न में सूर्य के साथ हो तो जातक बुखार से पीड़ित होता है, मंगल ग्रह के साथ हो तो अपेंडिसाइटिस और शल्यचिकित्सा होता है,बुध के साथ हो तो पित्त दोष से ग्रस्त होता हैं, बृहस्पति के साथ युति से कोई विशेष रोग नहीं होता है,शुक्र के साथ युति से यौन रोग होता है। वायु प्रकृति से संबधित रोग शनि के साथ युति से होते है ,छठी एवं आठवें भाव के स्वामी के साथ राहु की युति नाड़ी से संबंधित रोग देता हैं,केतु के साथ युति से अनजाना भय और यहाँ तक की घर के व्यक्तियों से भी डर या मतिभ्रम की स्थिति बनी रहती हैं। चंद्रमा के साथ छठी एवं आठवें भाव के स्वामी या पाप ग्रह के साथ युति से जल से सम्बंधित खतरा बना रहता है और कफ जनित रोगों से भी खतरा बना रहता है,मानसिक रूप से पागलपन या उथल-पुथल बना रहता है। इस प्रकार, हम एक जन्म कुंडली से जातक के पिता, माता, भाई, पत्नी आदि के ग्रहों के विभिन्न करकत्वों का गहन विशलेषण कर रोगों का निर्धारण करने के लिए इन सिद्धांतों को अपनाते हैं।

(मैंने अपने अनुभव से कितने जातकों के रोग की भविष्यवाणी कर उचित समय रहते उसका रोकथाम एवं इलाज करवाया है।अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है “Prevention is better than cure” इसका अर्थ-’इलाज से बेहतर रोकथाम है’ इसलिए समय रहते हर जातक/हर व्यक्ति को अपने कुंडली का विश्लेषण कर कम से कम रोगों के बारे में आवश्यक जानकारी लेकर उचित समय पर इसका उपाय करवा लें जिससे रोगों की तीव्रता को न्यून या खत्म किया जा सकता है लेकिन पाठकगण यह अवश्य जान लें कि रोगों की तीव्रता ग्रहों के बलाबल स्थिति एवं महादशाओं के ऊपर निर्भर करता है)


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Harshraj Solanki

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