सेक्स की शुरुआत कहां से होती है?भारतीय समाज में यह इतना विकृत क्यों है एवं श्लील-अश्लील के विवाद से ऊपर उठकर इसके विकृति को रोकने का नैतिक दायित्व किसका है?
प्रेम या काम मनुष्य हो या दूसरे जीव इनका अनिवार्य लक्षण है| प्रेम और काम की शुरुआत आत्मप्रेम/आत्ममोह से होती है. अपने आप में आकर्षण और प्यार करने वाली प्रवृति लड़कपन के आरम्भ से ही हर किसी में पाई जाती है और प्रत्येक मनुष्य में यह अनिवार्य लक्षण है जो प्राकृतिक नियम ( लॉ ऑफ़ नेचर ) से बंधी है इसे छुपाना असंभव है| आत्मप्रेम/आत्ममोह जिसे अंग्रेजी में Narcissism कहते है खुद के प्रति पहला आकर्षण बोध होता है| वैज्ञानिक दृष्ट्रि से,आत्मप्रेम किशोरावस्था में शरीर के हार्मोनिक परिवर्तन के कारण उभर कर आता है जो की काम ( सेक्स) की शुरुआत मानी जाती है| शरीर में हार्मोनिक परिवर्तन के कारण आत्मप्रेम स्त्रियों में पुरुषो के मुकाबले ज्यादा देखा जाता है तभी तो कहा गया है “पुरुष सिर्फ आइना देखता है और स्त्री आईने में खुद को ढूंढती है’’|
ऊर्जा चाहे जो भी हो अगर यह संतुलित अवस्था में रहे तो इसका प्रयोग व्यक्ति मनचाहा रूप से कर आनंदायक फल की प्राप्ति कर सकता है लेकिन जब यही ऊर्जा विकृत रूप ले लेती है तो व्यक्ति विशेष के लिए अभिशाप बन जाती है “काम ऊर्जा भी ऐसी ही है”! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और अपनी भौतिक, शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसे भी प्रकृति के नियम के अनुसार चलना पड़ता है.प्रकृति की अपनी एक अलग व्यवस्था है जो पुरे पृथ्वी पर सामान रूप से लागू होती है लेकिन मानव ने अपनी एक अलग सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था बना ली है इसलिय प्रत्येक समाज की अपनी एक अलग विधि-व्यवस्था होती है जो खुद में विशिष्ट पहचान रखती है,जैसे पश्चिमी समाज की अपनी एक अलग व्यवस्था और विशेषता है वहाँ भौतिकवाद एवं खुलापन ज्यादा है,पश्चिम का आध्यात्म गिरजाघर के प्रार्थना तक सीमित है और भारतीय समाज अपनी एक अलग पहचान लिए हुए आदर्श संहिता और मर्यादाओं को समिल्लित करके विभिन्न जीवन दर्शन का प्रतिपादन करता हुआ अध्यात्मिक जीवन एवं प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर मानव जाति को उन्नंती की ओर ले जाता है और जब यही व्यवस्था असंतुलित होती है तो चाहे वह सामाजिक रूप से हो या शारीरिक रूप से सिर्फ विकार एवं विकृति को ही जन्म देती है|
मैथुनिक सृष्टि का विकास नर मादा मिलन के बिना संभव नहीं! इसी मिलन के आधार पर सृष्टि की रचना हुई ;विभिन्न धर्मो में इसे पुरुष-प्रकृति ( शिव-प्रकृति) मनु-श्रद्धा आदम-हव्वा से प्रतिष्ठित किया है| भारतीय समाज में इसी मिलन के मर्यादित स्वरूप को विवाह संस्था के रूप में स्थापित किया गया है और स्त्री को समाज में एक आदरणीय सम्मानित एवं देवी के रूप में पूजनीय स्थान दिया गया| इसी सम्मान के परिणामस्वरूप आज के दौर में स्त्री चारदीवारी से निकल कर अपनी सीमा को लांघते हुए पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है और बढ़ना भी चाहिए लेकिन वही स्त्री बहुत बार विशेष परिस्थिति के कारण बिना परिस्थिति का पूर्ण अवलोकन किए खुद को बचाने के लिए पुरुष को तक्षण चरित्रहीन,बलात्कारी की संज्ञा दे देती है, यह कोर्ट/कानून ही नहीं समाज के लोग भी अच्छी तरह जानते हैं| महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न है की पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली आज की नारी क्या सच में इतनी अबोध है जो लंबे यौन संबंध या शोषण से धोखा खा जाएं?बल्कि यह भी संभव है कि उसने ही किसी लाभ के अंतर्गत इसका ताना-बाना बुना हो! किसी पुरुष पर आरोप लगाने के बाद महिला अगर कोर्ट में किसी कारण से मुकर जाए तो रिहाई होने के बाद भी पुरुष और उसका परिवार जो मानसिक व समाजिक यातना झेलेगा उसका हर्जाना कौन देगा? आए दिन ऐसे मामले आते रहते हैं जिनसे रेप के कई केस झूठे साबित होते हैं! क्या ऐसा झूठा केस करने वाली महिलाओं को भी वही दंड मिलेगा जो बलात्कारी पुरुष को मिलता है? हर बार पुरुष वर्ग ही दोषी हो ऐसा मानसिकता लेकर किसी एक वर्ग को कलंकित करना कहां का न्याय है? धरातलीय स्तर पर देखा जाए तो पुरुष की शारीरिक बनावट ऐसी ही है जिससे प्रथम दृष्टि में रेप का मौलिक कारण पुरुषों को ही मान लिया जाता है| सही से अन्य पक्षों को गौर किया जाए तो महिलाओं एवं उत्तेजक तत्वों की भागीदारी कुछ कम नहीं है| भारतीय समाज के लिए हमारा बौद्धिक दुर्भाग्य यह है की पश्चिमी ( यूरोप और अमेरिका ) सांस्कृतिक के जूठन पर हमारी नई सभ्यता की संक्रमित सेहत बन रही है| उससे भी बड़ा दुर्भाग्य तो यह है की हमारी मानसिकता वही सांस्कृतिक रूप से पिछड़े समाज की है ( पश्चिमी विचार के समर्थको के अनुसार) और रहन सहन खान-पान यहाँ तक की वस्त्र भी पश्चिम का नक़ल है| न तो हम दोनों में सामंजस्य और संतुलन बैठा पा रहे हैं और न ही दोनों संस्कृति को समरूपता से अपना ही पा रहे हैं परिमाणतः हमारे समाज में उथल-पुथल और असंतुलन के कारण सही निर्णय न ले लेने की मानसिकता के कारण रेप और कामुकता जैसे विकृति के दुष्परिणाम से आज भारतीय समाज त्रस्त हैं|
इन सब का प्रमुख कारण पश्चिमी बाजारवाद है. स्त्री क्या पहने या उतारे इसको तय करने वाला पुरुष कौन होता है ? निश्चय ही कपड़ो या परिधानों के धारण में स्त्री अपनी मर्जी की मालकिन है और होना भी चाहिए!! यह उसकी समझ से उसकी स्वतंत्र होने की घोषणा है लेकिन सच्चाई बेचारी उन स्त्रियों के समझ से ठीक विपरीत है.आप क्या पहने या क्या ना पहने यह बाजार तय करता है वही तय करता है कि स्त्री का कौन-सा अंग कितना ढका हुआ रहे और कौन-सा अंग कितना खुला रहे!! वह पूर्वी समाज की स्त्रियों के सांस्कृतिक संकोच को अपनी सेक्सुअल व्यापार की कैंची से काटकर उसका साइज़ निर्धारित करता है. इसके बाद भी स्त्री कहे कि मैं क्या पहनू और क्या न पहनू,मेरी मर्ज़ी! तो निश्चय ही उनके विवेक पर अचरज एवं हंसी ही आती है; उसकी मर्जी है क्या? वह तो सिर्फ वैश्विक बाजार की उपभोक्ता भर है. उसके पास उपभोग के रूप में एक सीमित चयन की स्वतंत्रता भर है.वह इसे ही अपनी आज़ादी और मन मर्जी मान रही है,वास्तव में कौन सा वस्त्र पहनना है या नहीं पहनना है इसका संबंध विवेक से होना चाहिए. मर्जी बाजार की लालचवादी भाषा का धोखादेह शब्द है जिसमें स्त्री का भोलापन फंस गया है!!
यूरोप और अमेरिका भारतीय अध्यात्म और योग को अपना रहे और हम भारतीय अपनी सांस्कृतिक रूप से अनाथ और विवेकहीन होते जा रहे हैं . परिणामतः समाज में व्यभिचार एवं रेप जैसी घटना और देशों की तुलना में हमारे यहां दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.इसका सीधा और स्पष्ट कारण है दोनों संस्कृतियों में तालमेल एवं सामंजस्य नहीं बैठा पाना.आज हमारे चारों ओर चाहे वह पत्रिकाएं हो या न्यूज़ चैनल एंकरिंग या विज्ञापन ही क्यों ना हो जहां स्त्री की कोई जरूरत नहीं वहां भी जबरदस्ती भड़किले रूप से इन्हें परोसा जाता है!! दूरदर्शन के पुराने न्यूज़ एंकर विज्ञापन तो याद होंगे ही !! अपने विवेक अनुसार तुलना कीजिए आज और कल में अंतर स्पष्ट हो जाएगा!
सच्चाई तो यही है कि आधुनिकता एवं खुलेपन के नाम पर भारतीय समाज एवं संस्कृति पर प्रहार करके पश्चिम बाजार बुनियादी रूप से पॉर्न इंडस्ट्री के लिए रास्ता बना चुका है जहां अरबों का निवेश होता है. वेस्टर्न गारमेंट्स के नाम पर आज विज्ञापनों में नग्नता के अलावा और कुछ नहीं! इसलिए भारतीय समाज में स्त्री को खोलना जरूरी है, अभी सिर्फ लो-बेस्ट में आई है, जल्दी फैशन बाजार में विज्ञापन मीडिया वे परिधान भारतीय युवतियों में दीवानगी भरेगी जो पोर्न फिल्मों में दिखाई देती हैं फिर विवेक को भूल जाइए आने वाले समय में मनमर्जी ही मूल्य निर्धारित करेंगी !और फिर रेप जैसी अप्रिय घटना के बाद कैंडल मार्च के लिए घड़ियाली आंसू के साथ हम निकल पड़ेंगे फिर श्लील-अश्लील का बहस टीवी चैनल की टीआरपी बढ़ाएंगे|
सारांशतः स्त्री और पुरुषों की आपसी सहमति एवं सामंजस्य से पूरे समाज का भविष्य बनता और बिगड़ता है स्त्रियों का भविष्य सुधारने के लिए में पुरुषों की अहम भूमिका रही है सती प्रथा की जड़ से समाप्त करने के लिए राजा राममोहन राय जैसे पुरुषों की भूमिका को क्या महिलाएं भूल सकती हैं? भीम ने दुशासन की छाती फाड़ कर नारी के अपमान का बदला लिया था द्रोपदी तो अपने अपमान का बदला लेने के लिए तीर तलवार लेकर युद्ध में नहीं उतरी थी.यह हमारी दुनिया है जितनी महिलाओं की उतनी ही पुरुषों की! इसे मिलजुलकर सजना सवारना है .प्रत्येक पुरुष में नारी प्रत्येक नारी में पुरुष यही अर्धनारीश्वर या पुरुष-प्रकृति के सिद्धांत को अपना कर हम अपने जीवन में चाहे वह अध्यात्मिक हो या भौतिक व सामाजिक लक्ष्य को प्राप्त कर समाज में पश्चिम प्रभाव वाले मानसिकता को रोककर रेप जैसे घृणित कुकर्म को रोक सकते हैं सिर्फ कानून के द्वारा इसे रोकने की अपेक्षा करना असंभव है ! पुरुष वर्ग को यह स्वीकार करना ही होगा कि रेप के बढ़ते अपराधों से पुरुष वर्ग कलंकित हो रहा है! हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए (कुछ कारणों को छोड़कर) कि हम महिलाओं के गुनहगार है,उन विकृत मानसिकता वाले कामुक भेड़ियों से जूझना हम पुरुषों का नैतिक दायित्व है|
अगर इन्हीं विभिन्न ग्रह योगों का प्रभाव चतुर्थ स्थान ,लग्न,अष्टम स्थान पर पाप प्रभाव ज्यादा हो एवं मंगल का शुक्र के साथ द्वादश से संबंध हो तो रेप तक का मानसिकता जातक या जातिका में आ जाता है.चंद्रमा व्यक्ति के मानसिक स्तर को दर्शाता है और गुरु विवेक का प्रतिनिधि करता है अगर चंद्रमा एवं गुरु प्रभावित हो एवं उपरोक्त ग्रह योग बन रहे हो तो खुद को संभालना एवं संयमित करके विवेक का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है तथा चाहे अनचाहे गलत कार्य कर बैठता है|
(भारतीय शास्त्रों में ऐसे ग्रह योग असंख्य हैं जिससे भविष्य में होने वाली आशंकाओं एवं दुर्घटनाओं को कुंडली का अच्छे से विशेषण करवा कर रोका जा सकता है एवं इसका उपाय कर शरीर में विकृत ऊर्जा को संतुलित अवस्था में लाया जा सकता है अत: विशेष जानकारी के लिए संपर्क करें)
जरा सोचिए साधारण सा लगने वाला वीर्य जो एक अनुकूलता मिलने पर एक जीव का निर्माण करती है इसमें कितनी ऊर्जा समाहित होगी !इस विषय में शिव पार्वती वार्ता प्रसंग है|
भगवान शंकर पार्वती से कहते है -
‘ हे पार्वती! बिन्दु अर्थात वीर्यरक्षण सिद्ध होने के बाद कौन सी सिद्धि है जो साधक को प्राप्त नहीं सकती साधना द्धारा जो साधक अपने वीर्य को ऊधर्वगामी बनाकर योगमार्ग में जो आगे बढ़ते है वे कई प्रकार की सिद्धियों के मालिक बन जाते है ऐसा ऊर्ध्वरिता पुरुष मोक्ष को जल्दी पा सकता है अर्थात आत्म- साक्षारत्कार जल्दी कर लेता है|
जप उपासना द्वारा -
( इस प्रकार ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र का कम से कम 10000 जप करना चाहिए. पूर्ण मंत्र सिद्ध करने के लिए एक लाख बार जप एवं दशांश हवन घी सहित तिल और शहद से दशांश हवन करना चाहिए)
(यह दवा केवल चिकित्सकीय परामर्श के बाद ही लेनी चाहिए / ये दवाएं विशेष रूप से पुरुषों के लिए हैं। https://jivansar.com/blog/category/sex-rape-with-astrological-aspects/ पर महिलाओं के संदर्भ में चर्चा की गई है। )
चिकित्सकीय (DOCTOR) परामर्श के बाद एवं इनके अनुसार दवाई का प्रयोग आई हार्मोनल विकृति को ठीक कर मानसिक संतुलतन करने में मदद करेगा.जिससे संभावित परेशानियों से निजात मिल जाए.आप कोई अनिष्ट कार्य करने से बच जाए यह आपके हित में है अन्यथा लांछनपूर्ण जीवन उम्रकैद या फिर फांसी का फंदा भी आपके इंतजार में हो सकती है क्योंकि पहले दृष्टिकोण में स्त्री को कोई दोषी नहीं मानता बेहतर है खुद को संयमित करके किसी दूसरी ओर रचनात्मक कार्य की ओर अपना ध्यान केंद्रित करें योगिक प्रयोग|
एक योगिक प्रयोग में यहां दे रहा हूं जो मेरा अनुभव सिद्ध प्रयोग है.जब भी काम का वेग उठे (अंदर से ज्यादा सेक्स की इच्छा हो) तो फेफड़ों में भरी वायु को जोर से बाहर फेंको,जितना अधिक बाहर फेंक सको उतना उत्तम है फिर नाभि और पेट को भीतर की ओर हल्के खींचो इस प्रकार दो से तीन बार के प्रयोग से ही काम विकार शांत हो जाएगा और आप किसी अनहोनी से बच जाओगे. इस प्रक्रिया के अंतर्गत होता यह है कि भीतर का हवा काम शक्ति को नीचे की ओर से खेलता है उसे जोर से और अधिक मात्रा में बाहर फेंकने से मूलाधार चक्र में काम केंद्र को सक्रिय नहीं कर पाता है और फिर पेट को भीतर अंदर सिकुड़ने से वह खाली जगह बन जाता है उस खाली जगह को भरने के लिए काम केंद्र के पास आसपास सारी शक्ति अंदर की ओर चली जाती है जिससे वह स्थान शून्य हो जाता है| इस प्रयोग से पेट की बीमारियां भी मिटती है,कब्ज से छुटकारा मिलता है एवं वीर्यरक्षण होकर अध्यात्मिक शक्ति जागृत होती है
रोज सुबह उठकर खाली पेट तुलसी के पत्तों को जल के साथ हल्का चबाकर निगल जाएं. ध्यान रहे तुलसी के पत्ता ज्यादा देर मुख में ना रखें क्योंकि इसमें पारा का मात्रा होता है जो दांतों के ऊपरी परत को खराब कर देता है इसलिए शास्त्रों में इसे चबाने के लिए मना किया गया है. प्रत्येक दिन इसका खाली पेट सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ती ही है इसके साथ-साथ एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति को बढ़ाकर खुद को संयमित करने में सहायक होता है.(पढ़ने वाले बच्चों को तो यह प्रयोग जरूर करना ही चाहिए)
जहां तक हो सके कच्चा लहसुन-प्याज और ज्यादा मसाला युक्त भोजन से परहेज करें क्योंकि इसके ज्यादा सेवन से आंतरिक गर्मी बढ़ जाने के कारण भी काम ऊर्जा विकृत रूप ले लेती है. हमारे शास्त्रों में प्याज-लहसुन से परहेज करने का यही प्रमुख कारण था ताकि साधक इस कामोत्तेजक प्रकृति से बचकर रहें. प्याज लहसुन खाने ना खाने से आस्था-अनास्था से कोई संबंध नहीं बस साधना में आने वाले अतिरिक्त बाधा से खुद को बचाए रखने के लिए ही इसका सेवन वर्जित किया गया है|
(अपने निजी सेक्स सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण लिए तुरंत संपर्क करें! आपके व्यक्तिगत समस्याओं को पूर्ण रूप से गोपनीय रखा जायेगा)
NameHarshraj Solanki
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