हिंदू मान्यताओं के अनुसार, मंगल को पृथ्वी का पुत्र मतलब भूमिपुत्र कहा जाता है।इस ग्रह को साहस,विवाद,व्याकुलता और युद्ध का देवता माना जाता हैं। मंगल पुरुष प्रकृति का सूखा उग्र एवं अलगाव प्रवृत्ति का ग्रह है,इसी कारण किसी जातक की कुंडली में मांगलिक होना पति-पत्नी के बीच अलगाव की स्थिति उत्पन्न कर देता है। यदि वर और कन्या की कुंडली में मंगल कमजोर और पीड़ित है, तो दोनों तुनक मिजाजी एवं छोटी-छोटी बातों पर जल्दी आपा खो देंगे। मंगल के अत्यधिक पीड़ित होने के कारण जातक मूर्ख,मोटे दिमाग का और झगड़ालू स्वाभाव का होता है।जातक में अत्याधिक कामुकता होती है।शादी को तैयार नए जुड़े के लिए कुंडली में मांगलिक विश्लेषण करना अति महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी के आधार पर नव-जोड़े की लंबी एवं सुखद उन्नतिदायक भावी जिंदगी की नीव रखी जाएगी।
यदि मंगल पहले,दूसरे,चौथे,सातवें,आठवें या बारहवें भाव में “लगन कुंडली” में स्थित है तो इसे ही मांगलिक दोष माना जाता है।प्राचीन शास्त्रों के अनुसार,मंगल दोष को लग्न के साथ-साथ चंद्रमा, शुक्र और सातवें भाव के स्वामी से भी माना जाना चाहिए। आम तौर पर, उत्तर भारत में मांगलिक दोष को केवल लग्न,चन्द्र लग्न से देखने का चलन है,दूसरे भाव से मांगलिक दोष नहीं माना जाता है। मांगलिक दोष से पीड़ित व्यक्ति के विवाहित जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है। यह शादी करने या होने में देरी, धोखा और बाधा उत्पन्न करता है। मांगलिक दोष की तीव्रता या इसकी स्थिति के अनुसार,शादी के बाद किसी एक साथी या दोनों नव-जोड़े के लिए शारीरिक, मानसिक या आर्थिक कठिनाई बनी रहती है। यह आपसी विवाद,मत-भेद,आरोप-प्रत्यारोप का कारण बनता है और इसी कारण विवाह के विघटन या अलगाव का स्थिति बन जाती है।अहं के टकराव के कारण दोनों एक दूसरे को समझने की कोशिश नहीं करते हैं।यदि मांगलिक दोष तीव्र या ज्यादा पाप पीड़ित है,तो उनमें से एक साथी बीमार रह सकता है या दोनों में से किसी एक या दोनों की असामयिक मृत्यु हो सकती है। यदि सप्तम भाव और दशम भाव में पाप ग्रह मौजूद है तो भी वैवाहिक समस्या उत्पन्न होती है। इसके बावजूद, किसी को मांगलिक दोष से डरना नहीं चाहिए क्योंकि जब वर और वधु दोनों के जन्मपत्रिका में मांगलिक दोष समान हो या किसी कारण उसकी तीव्रता में कमी आ रही हो तो मंगल का दुष्प्रभाव कम हो जाता है एवं इससे अशुभता में कमी आकार शुभता में वृद्धि होती है जिससे नव-दम्पति का जीवन स्थिर एवं खुशहाल होता है।
हालांकि मेरे निजी अनुभव के अनुसार,मंगल दोष को पूरी तरह से रद्द नहीं किया जा सकता है,केवल इसकी तीव्रता को विशेष परिस्थिति में कम किया जा सकता है क्योंकि वर-वधू दोनों की कुंडली में मंगल के स्तर में पर्याप्त अंतर होता है,इसलिए विवाह के लिए आगे बढ़ने से पहले कुंडली मिलान करके ही इसका गहन विश्लेषण करवा कर पीड़ित ग्रह का निदान करना या करवाना अति आवश्यक है जिससे दांपत्य जीवन सुखी एवं समृद्धशाली हो सके।
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