आकाश मंडल में कुल 27 नक्षत्र माना गया है, 27 नक्षत्रों के अतिरिक्त ‘अभिजीत’नाम का 28वा नक्षत्र भी माना जाता है।उत्तराषाढ़ा की अंतिम पन्द्रह घटी तथा श्रवण के प्रारंभ की चार घटी,इस प्रकार कुल उन्नीस घटियो के मान वाला नक्षत्र को ‘अभिजीत’ नक्षत्र के नाम से जाना जाता है।सामान्यता एक नक्षत्र का मान 60 घाटी का मान होता है।किसी जातक का जन्म जब अश्विनी, माघ, मूल,अश्लेषा,ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में हुआ हो, तो जातक का जन्म गंड मूल में माना जाता है। जिनमें से तीन नक्षत्र केतु और तीन नक्षत्र बुध ग्रह के स्वामित्व वाला होता हैं। गंड मूल नक्षत्र की पहली श्रृंखला में केतु के तीन नक्षत्र अश्विनी, मघा और मूल हैं। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला बच्चा 27 दिनों तक पिता द्वारा नहीं देखा जाता है और जन्म तिथि से वापस फिर जिस दिन को गंडमूल नक्षत्र आने पर गंड मूल शांति पूजा की जाती है। बुध के नक्षत्र की दूसरी श्रृंखला अश्लेषा,ज्येष्ठा और रेवती है।बुध नक्षत्र की शांति जन्म के दिन से 10 वें या 9 वें दिन किया जाता है। यदि कुंडली में ग्रह लाभकारी भाव में हो तो गंड मूल नक्षत्र बुरा परिणाम नहीं देता है।इसका अच्छा या बुरा परिणाम नक्षत्र या नक्षत्र चरण के ऊपर निर्भर करता है। इन दोषों का नकारात्मक या सकारात्मक परिणाम इन नक्षत्रों की प्रकृति पर भी निर्भर करता है -
गंडमूल नक्षत्र (केतु,बुध) में पैदा हुए लोगों को नियमित रूप से भगवान गणेश और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।भूरे रंग के कपड़े और हरी सब्जी साथ ही साथ केतु रत्न लहसुनिया और पन्ना रत्नों को संबंधित नक्षत्र में दान में देना चाहिए।
(जन्म कुंडली का पूर्ण विवेचन किए बिना सिर्फ नक्षत्रों के आधार पर ही इसे अशुभ या अन्य कोई धारणा मान लेना गलत है क्योंकि कुंडली में विभिन्न भाव एवं विभिन्न राशि में बैठे ग्रहों का पूर्ण गहन विश्लेषण किए बिना सिर्फ नक्षत्रों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना निराधार है इसलिए अपनी कुंडली का सम्पूर्ण विश्लेषण अनुभवी ज्योतिष हर्षराज सोलंकी से करवा ले)
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