हिंदू शास्त्रों में विश्वास करते हैं। भगवत गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं '' तस्मादृतां प्रमाणते कार्याकार्य व्यवस्थितौ '' जिसका अर्थ है ‘शास्त्रों को प्रणाम माना जाना चाहिए’। शास्त्रों में बताए गए नियम क्रिया (किया जाने वाला कार्य) और अक्रिया (नहीं किया जाने वाला कार्य) के सिद्धांत के अनुसार हमें चलना चाहिए। इसलिए, हिंदुधर्म में, विशेष रूप से बच्चों से संबंधित विषयों और गर्भावस्था के बारे में किसी भी अन्य धर्मों की तुलना में बहुत सारे सिद्धांतों का उल्लेख हैं।शास्त्रों में कहा गया है 'अपुत्रस्यगर्तिं नस्ति' बिना पुत्र वाले व्यक्ति को मुक्ति (मोक्ष) नहीं मिलती है। धार्मिक दृष्टिकोण से,हिंदू में विवाह के पवित्रता का फल बच्चों का जन्म एवं वंश की सदा वृद्धि है इसलिए समाज में नि:संतान होना पारिवारिक दृष्टिकोण से अच्छा नहीं माना जाता है इसलिए इसे बहुत बड़ी समस्या के रूप में देखा जाता है।शास्त्रों में ज्येष्ठ पुत्र को कर्मपुत्र कहा गया है और जेष्ठ पुत्र होने के कारण माता पिता को उनकी मृत्यु के उपरांत मुखाग्नि एवं अंत्योष्टि क्रिया का अधिकार भी जेष्ठ पुत्र को ही प्राथमिक रूप से प्राप्त है।
किसी स्त्री पुरुष की शादी हो जाने के बाद उनकी सारी खुशियाँ माता-पिता बनने में निहित होती हैं। उस दंपत्ति के लिए संसार का कोई और भौतिक आनंद ऐसा नहीं जो खुद के बच्चे के जन्म की खुशी के तुलना में हो सकता हो लेकिन दुर्भाग्य से, कुछ दंपत्ति को अपने जीवनकाल में पुत्र नहीं होता लेकिन कुछ दंपत्ति को सिर्फ पुत्री ही होती है, कुछ मामलों में, कुछ दंपत्ति को नि:संतान होने की समस्या से जीवन-भर जूझना पड़ता है और कुछ एक दंपतियों को अक्सर बच्चे के जन्म में बहुत देरी का सामना करना पड़ता है। बच्चे के जन्म से संबंधित समस्याओं में, दोनों दंपतियों की कुंडली का ठीक से विश्लेषण किया जाना चाहिए। (विशेष रूप से महिलाओं की कुंडली को गर्भाधान के दौरान अच्छे से विश्लेषण किया जाना चाहिए)। आमतौर पर इस प्रक्रिया को जिसे कुंडली-मिलान कहा जाता है,विवाह के समय ही कर लिया जाना चाहिए।दोनों दंपतियों की कुंडली का विश्लेषण करने के बाद, दो संभावनाएं हो सकतीहैं- चाहे वह संतानहीनता की स्थिति हो या विलंब से संतान होने की स्थिति !!
प्राचीन ज्योतिष के अनुसार, यदि किसी जातक के कुंडली में पंचम भाव एवं नवम भाव और उसके स्वामी अच्छी स्थिति में ना हो तो बच्चे के जन्म से संबंधित परेशानियों होती हैं. बच्चे के जन्म के बारे में भविष्यवाणी करने के लिए, ज्योतिषी को प्रथम भाव,पंचम भाव एवं नवम भाव तथा इनके स्वामियों की स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए.लग्न,नवांश,सप्तमांश (क्योंकि यदि सप्तमांश बली हो और शुभ ग्रह से युक्त एवं दृष्ट हो तो उत्तम संतान सुख प्राप्त होता है)और सप्तमांश वर्ग कुंडली का भी अच्छे से विश्लेषण करना चाहिए .संतान प्राप्ति के बारे में, हमारे वैदिकऋषियों द्वारा परिभाषित कई योग हैं।उनमें से कुछ योग इस प्रकार हैं:
यदि पंचम भाव,द्वितीय भाव एवं सप्तम भाव के नवांशाधिपति किसी बुरे ग्रह के साथ युति या दृष्टि में हो तो यह संतानहीन योग बनाता है।
यदि बृहस्पति,लग्न का स्वामी,सातवा भाव एवं इसका स्वामी और पंचम भाव एवं इसका स्वामी तीनों निर्बल हो तो संतानहीन योग का निर्माण करता है।
यदि बारहवें भाव का नवांशाधिपति अष्टम स्थान में हो और क्रूर ग्रह पंचम भाव में हो तो यह संतानहीनता का योग बनाता है।
बच्चे का जन्म 5 वें घर या सप्तमेश के 5 वें घर के स्वामी से जुड़े दशाओं में होता हैं।यदि पांचवे भाव का स्वामी अस्त हो अथवा वक्री हो या किसी अन्य क्रूर ग्रह से पीड़ित हो तो साधारणतह संतान प्राप्त होने में देरी होती है।
यदि 5 वें भाव का स्वामी 6-8-12 में हो तो कोई संतान नहीं होती है।यदि पांचवें भाव का स्वामी अस्त हो पाप ग्रह के साथ युति में हो तो भी कोई संताने नहीं होती है अगर होती है तो उसकी मृत्यु जल्द हो जाती है।
यदि शनि पंचम भाव के स्वामी के साथ पंचम में हो और चंद्रमा द्वारा देखा जाता हो अथवा चंद्रमा राहु का युति हो तो इस योग में बच्चे की हानि होती है।
यदि द्वितीय भाव में मंगल हो और बृहस्पति बारहवें में स्थित हो, शनि पांचवें स्थान पर हो या शनि राहु का संयोग हो अथवा राहु द्वारा पांचवा भाव देखा जाता है तो इन ग्रह स्थितियों के कारण संतान हानि होती है।
यदि 5 वें भाव का स्वामी केन्द्र और त्रिकोण में स्थित हो तो संतान के जन्म के लिए यह शुभ योग है।
यदि लग्नेश या बृहस्पति या शुक्र केंद्र में हों, तो जातक का पुत्र दीर्घायु और धनवान होता है। सप्तमांश विषम राशि का हो उस में शुभ ग्रह हो या पुरुष ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो पुत्र-सुख प्राप्ति योग बनता है। यदि सप्तमांश सम राशि का हो और स्त्री ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो पुत्री का सुख प्राप्ति योग बनता है। यदि दोनों प्रकार के स्त्री या पुरुष ग्रह किसी भी राशि में हो तो पुत्र और पुत्री दोनों का सुख प्राप्त होता है ।
विष्णु पुराण के अनुसार कुछ तिथियों जैसे रिक्ता, अष्टमी, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा और भद्रा तिथि को यौन संबंध से बचना चाहिए। वास्तव में ज्योतिषीय रूप से पूर्णिमा के दिन गर्भाधान के लिए यौन संबंध से बचा जाना चाहिए । 1,2,3,4,5,6,10,12 और 13 तीथियाँ गर्भाधान के लिए शुभ तिथियाँ होती हैं।
शास्त्रों के अनुसार संतान गोपाल मंत्र का जप संतान प्राप्ति के लिए अचूक उपाय है।प्रत्येक दंपत्ति को इसका नियमित रूप से निश्चित संख्या में जप एवं मंत्र सिद्धि कर लेना आवश्यक है इससे मनोवांछित संतान की प्राप्ति होती है एवं संतान से संबंधित बाधा का नाश होता है।दंपत्ति को श्री कृष्ण के बाल रूप का चित्र या मूर्ति स्थापित कर मनोवांछित संतान प्राप्ति का संकल्प लेकर विधिवत पूजा कर धूप दीप नैवेद्य चढ़ाकर निश्चित संख्या में निम्न मंत्र का शांत चित्त होकर जप करना चाहिए।
(कुछ तांत्रिक टोटके में यह जानबूझकर नहीं दे रहा हूं इसके लिए आप सीधे मुझसे संपर्क कर सकते हैं)
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