पितृ दोष विश्लेषण
पितृ शब्द का पर्याय पिता और पूर्वजों से है। वैदिक शास्त्र के अनुसार जो श्राद्ध नहीं करता है और पूर्वजों के मृत्यु पर दान पुण्य नहीं करता है इसलिए जातक के पूर्वजों के असंतुष्ट और अतृप्त होने के कारण जातक को पितृदोष नाम का योग के साथ इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है। पूर्वजों द्वारा किए गए बुरे कर्म पितृ दोष के रूप में भी भावी पीढ़ी के जातक भोगना होता है.प्राचीन ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष का निर्माण कुंडली में कुछ ग्रहों की विशेष स्थिति से बनता है। सामान्य ग्रह स्थिति जो विभिन्न प्रकार के पितृ दोष का निर्माण करती है, इस प्रकार है-
- अगर चंद्रमा कुंडली के तीसरे या छठवें भाव में हो।बुध ग्रह पाप प्रभाव से पीड़ित हो तो इन दोनों ही पित्र दोष के बहुत सारे दुष्प्रभाव जातक के ऊपर होते हैं जैसे परिवार में गर्भपात लाइव भिलाईस्थितियों में मन में अशांति बेचैनी एवं भूलने की समस्या से जातक पीड़ित रहता है।
- जन्म कुंडली के चौथे घर में केतु हो और जातक के जन्म पत्रिका में चंद्रमा पाप प्रभावित हो तो मानसिक अशांति के साथ -साथ मतिभ्रम संबंधी समस्याओं से जातक पीड़ित रहता है।
- शुक्र, शनि और राहु या इन तीनों में से दो कुंडली के 5 वें घर में स्थित रहे और सूर्य भी पाप प्रभाव एवं पीड़ित अवस्था में हो तो यह सूर्य से संबंधित परेशानी देता है।
- सूर्य, चंद्रमा या मंगल या इन तीनों में से दो या इन तीनों जन्म कुंडली के 10 वें या 11 वें भाव में हो और शनि का वि पाप प्रभाव हो तो यह ग्रह योग कैरियर,लाभ एवं आर्थिक संबंधी परेशानियां देता है।
- प्राचीन ज्योतिष के अनुसार,राहु या शनि जैसे किसी पाप ग्रह की दृष्टी सूर्य पर हो तो यह पितृदोष का योग बनाती है। सूर्य पिता का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए इस ग्रह योग के कारण पिता,आंख एवं हड्डी से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- पितृ दोष के बहुत सारे दुष्प्रभाव जातक के ऊपर होते हैं जैसे परिवार में गर्भपात, लाइलाज बीमारी, गरीबी और परिवार में संसाधनों की कमी इस दोष के विभिन्न अशुभ प्रभाव है।
इसके प्रभावों को कम करने के लिए उचित उपचार की आवश्यकता होती है -
- बरगद के पेड़ में नियमित रूप से जल अर्पण करना|
- हर अमावस्या पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं या अन्न का दान करें।
- उज्जैन, नासिक, गंगा आदि विभिन्न धार्मिक स्थानों पर स्नान करें।
- Do the sharaadha on the date of ones forefather’s death.
- श्राद्ध के दौरान कौवे,कुत्तो और जरूरतमंदों को भोजन प्रदान करते हैं(पौराणिक ग्रंथों में कौवा पूर्वजों का प्रतिनिधित्व करता हैं और केतु आध्यात्मिक लोगों का प्रतिनिधित्व करता हैं)।