खगोल विज्ञान के अनुसार, बृहस्पति के बाद शनि सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। शनि गैस का एक विशालकाय गोला है जिसकी कोई ठोस सतह नहीं जो बादलों से घिरा हुआ है। शनि के रंगीन बादल अमोनिया आइस क्रिस्टल से बने हैं।बादलों के ऊपर शनि के वायुमंडल में लगभग 96% हाइड्रोजन और 4% हीलियम है, पृथ्वी की अपेक्षा शनि का आयतन 764 और वजन 95 गुना ज्यादा है। शनि सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसका घनत्व जल से भी कम है।शनि में एक बड़ी वलय प्रणाली है और किसी भी अन्य ग्रह की तुलना में शनि ग्रह को 18 से अधिक चंद्रमा हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि को सूर्य के पुत्र छाया के रूप में जाना जाता है और भगवान यम (मृत्यु के देवता) के भाई के रूप में भी जाना जाता है। शनि भगवान शिव के परम भक्त हैं। शनि जिन्हें न्याय का देवता माना जाता है,किसी व्यक्ति के पाप या बुरे कर्मों में लिप्त होने पर आसानी से क्रोधित हो जाते हैं।इसलिए कहा जाता है की शनिदेव अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं। प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि अपने युवावस्था के दौरान अपनी पालक माँ के खाना खिलाने में देरी होने के कारण उन्होंने अपनी माँ को पैर से मारा जिससे क्रोधित होकर उनकी पालक माँ ने शनिदेव को एक पैर से लंगड़ा होने का श्राप दे दिया।इसी कारण प्रतीकात्मक रूप से शनि को कुंडली में बहुत धीमी गति से चलने वाला ग्रह बताया गया है।
जन्म राशि से गोचर का शनि जब द्वादश,प्रथम एवं द्वितीय स्थानों में भ्रमण करता है जो एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक चलता है इसलिए साढ़े-सात वर्ष के अवधि को शनि की साढ़ेसाती कहते हैं।
चन्द्रमा से गोचर करते हुए शनि जब द्वादश,प्रथम एवं द्वितीय स्थानों में आता है जो एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक चलता है इसे ही तीन ढ़ैया से मिलकर बना हुआ साढ़ेसाती कहते है. आमतौर पर किसी व्यक्ति के जीवनकाल में शनि की साढ़ेसाती तीन बार आती है।
चन्द्र राशि से चतुर्थ भावऔर आठवें भाव में शनि के गोचर को शनि की कंटक या ढैय्या कहते हैं। जब गोचर में शनि चतुर्थ भाव और आठवें भाव में में होता है, तो यह बीमारी,कम लाभ, कठिनाइयों और चिंता के साथ भाई से झगड़े की अवधि होती हैं।
बहुत से लोग साढ़ेसाती शब्द से डरते हैं। यह साढ़े सात साल की अवधि है और आम तौर पर माना जाता है कि इस साढ़े सात साल की अवधि के लिए जाने वाले व्यक्ति के लिए एकमात्र विपत्ति में डालना है लेकिन यह सही नहीं है। इसका निर्धारण शनि के भाव,मित्र या शत्रु राशि एवं सर्वाष्टकवर्ग के अनुसार किया जाता है। जब शनि का अष्टकवर्ग में 4 अंक और सर्वाष्टकवर्ग में 28 अंक होते हैं तो शनि मिश्रित फल देता है।इससे कम है तो अशुभ तथा अधिक होने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं । यदि जन्म कुंडली में शनि बलवान हो खुद की राशि मकर,कुंभ राशि या उच्च के तुला राशि में हो ) तो अपेक्षाकृत कम पीड़ा देता है। दरअसल,शनि की साढ़ेसाती के दौरान जातक के सहनशीलता,शारीरिक एवं भावनात्मक क्षमता का भरपूर दोहन होता है। प्राचीन काल से, आम जनता के बीच एक आम धारणा रही है कि शनि की साढ़ेसाती आमतौर पर मानसिक, शारीरिक और वित्तीय दृष्टिकोण से दर्दनाक और समस्याग्रस्त होती है। जिस समय लोग शनि की साढ़ेसाती के बारे में सुनते हैं, वे चिंतित और भयभीत हो जाते हैं और यह धारणा बहुत हद तक सही भी है।शनि की साढ़ेसाती के दौरान जातक को आलस्य, मानसिक तनाव, विवाद, व्याधियों और शत्रुओं के कारण समस्या, चोरी और आग से होने वाले नुकसान और परिवार में बड़ों की मृत्यु का अनुभव हो सकता है। अथक प्रयास के बाद भी इच्छित परिणाम नहीं मिलते हैं। कोई भी काम मनोनुकूल नहीं होता, काम में देरी के साथ-साथ बाधा भी आती है।
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