वर्त्तमान समय मे कंप्यूटर द्वारा जन्मकुंडली निर्माण और पढने समझने और जानने का प्रयास मात्र सतही तौर पर ही हो सकता है लेकिन इसका गंभीर एवं सुक्ष्म विवेचन किसी दीर्घ अनुभवी ज्योतिषी द्वारा ही संभव है जो किसी जातक की जन्मपत्रिका मे स्थित शुभ-अशुभ योगो एवं उसके जीवन मे होने वाली ग्रहस्थिति एवं दशानुसार अच्छे एवं बुरे घटनाओ की समयपूर्व सटीक जानकारी दे सके | लेकिन उससे पहले क्या हम मानसिक रूप से यह मानने के लिए तैयार है की –
- ज्योतिषशास्त्र अंधविश्वास नही है ?
- रत्नों, टोटको आदि का प्रयोग पाखंड नही है ?
इन भ्रांतियों से हम जब तक नहीं उबरेगें तब तक कोई भी फलादेश या ज्योतिषिय प्रयोग यथा रत्न, टोटके आदि धूप में दीप जलाने समान निर्थक है क्योंकि औषधि हो या कोई ज्योतिषीय प्रयोग यहाँ तक की भोजन भी पूर्ण रूप से हमारे ऊपर प्रभाव नहीं डालता जब तक की हम शांतचित्त होकर सम्पूर्णता से इसे ग्रहण न कर ले !
"ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहणां बोधक शास्त्रम"
उपर्युक्त कथन से यह तो अवश्य स्पष्ट है की ज्योतिषशास्त्र ग्रहों नक्षत्रो आदि का मानव पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययनशास्त्र है| ज्योतिषशास्त्र तथा इसके प्रयोग की महत्ता प्राचीनकाल से लेकर आज के वैज्ञानिक युग तक किसी-न-किसी रूप मे बनी हुई है| इसका सबसे अच्छा उदाहरण कृषि, विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार का आरम्भ,वर्त-अनुष्ठान इत्यादी है| मनुष्य स्वभाव से ही अन्वेषक एवं जिज्ञासु प्राणी रहा है, वह सृष्टी के प्रत्येक अज्ञात को ज्ञात करने की चेष्टा करता रहा है| इसी के परिणामस्वरूप हजारो वर्ष पहले ही हमारे मनिषियों ने विभिन्न ब्रह्माण्डीय रहस्य को ज्योतिष के मूल नियम के द्वारा गणीतीय आधार पर फलादेश कर लिपिबद्ध किया तथा "यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे" सिध्दांत को उद्घाटित किया| इस सिध्दांत का तात्पर्य यह है की वास्तविक सौर जगत एवं ब्रह्माण्ड में ग्रहो के भ्रमण करने मे जो नियम कार्य करते है; वे ही नियम प्राणी मात्र के शरीर मे भी कार्य करते है अतः आकाशीय स्थित ग्रह शरीर स्थित ग्रहो के प्रतीक है|
इतने पर भी ज्योतिषशास्त्र के साथ एक विडम्बना एवं दुर्भाग्य यह है की यह जितने अधिक भविष्य के गर्भ में झाकने के लिए प्रसिद्ध है उतना ही अंधविश्वास को लेकर विवादास्पद है| “यह शास्त्र अधंविश्वास एवं ठग विद्या के अतिरिक्त कुछ भी नहीं”!! मेरे निजी अनुभव से ऐसी अल्प ज्ञानवान् धारणा उन्ही सज्जनो या पोंगा पंडितो की है जिनको इस विषय में या तो अधूरी ज्ञान या अनुभव हीनता है और जिन सज्जनों को ज्योतिष संबधी थोड़ा बहुत ज्ञान है भी वह भी विभिन्न भ्रातियों का शिकार होकर इसको अंधविश्वास मान बैठते है| इसका मुख्य कारण उनके अन्दर इस विषय को लेकर समग्र दृष्टि का अभाव ही कहा जा सकता है| अब भला इसमें इस ब्रह्माण्डीय शास्त्र का क्या दोष!! उदाहरणार्थ अगर कोई चिकित्सक चिकित्सा के क्षेत्र में अल्पज्ञ एवं अनुभवहीन रहे तो इससे पूरी चिकित्सा प्रणाली को अंधविश्वास या असफल घोषित कर विवादास्पद तो नही किया जा सकता !! यही नियम अन्य शास्त्र के जैसा ज्योतिषशास्त्र एवं इसके विभिन्न प्रयोगों यथा रत्न, टोटके आदि पर भी लागू होता है| प्रत्येक रत्न की अपनी रासायनिक संरचना होती है तथा उसका प्रभाव शरीर पर भिन्न-भिन्न होता है| यह तो वैज्ञानिकरूप से भी सिद्ध है|
अतः ज्योतिष विद्या वह दिव्य विज्ञान है जो भूत, भविष्य तथा वर्तमान तीनो कालो को जानने समझने की कला को सिखलाता है| ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के रहस्यो को उद्घाटित करता है| तथा इसके प्रयोग यथा रत्न, टोटके आदि ‘धुप मे छतरी’ के सामान कार्य करता है| जिससे विभिन शुभाशुभ घटनाओं और बाधाओं को खत्म तो नहीं लेकिन कम कर अवश्य ही जीवन को सरल एवं सुखमय बनाया जा सकता है!
जन्म पत्रिका मे कोई भी शुभ और अशुभ परिणाम ग्रहास्थिति एवं दशानुसार होता है| जो अपना अच्छा या बुरा फल समयानुसार देता है| पत्रिका के माध्यम से जीवन के विभिन्न आयामों को मैने सार रूप मे प्रस्तुत करने का लघु प्रयास किया है ; अतः मैने गहन मनन कर इसका नाम जीवनसार रखा है|
दैवज्ञ
हर्षराज सोलंकी